गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 53

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

छठा अध्याय

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वह समबुद्धि केवल कर्मयोग से ही होती है या किसी दूसरे साधन से भी होती है?
वह समबुद्धि ध्यानयोग से भी होती है, इसलिये मैं उस ध्यानयोग की विधि बताता हूँ। ध्यानयोगी भोगबुद्धि से संग्रह का त्याग करके, कामनारहित होकर, अन्तःकरण तथा शरीर को वश में रखकर तथा एकान्त में अकेला रहकर अपने मन को निरन्तर परमात्मा में लगाये।।10।।

मन को परमात्मा में लगाने के लिये अर्थात् ध्यान करने के लिये उपयोगी बातें क्या हैं?
शुद्ध पवित्र स्थान पर ध्यानयोगी क्रमशः कुश, मृगछाला और पवित्र वस्त्र बिछाये। वह आसन न अत्यन्त ऊँचा हो और न अत्यन्त नीचा हो तथा स्थिर हो अर्थात् हिलने-डुलनेवाला न हो।।11।।

ऐसा आसन बिछाकर क्या करे?
उस आसन पर बैठकर चित्त और इन्द्रियों की क्रियाओं को वश में रखते हुए मन को एकाग्र करके अन्तःकरण की शुद्धि के लिये ध्यानयोग का अभ्यास करे।।12।।

उस आसनपर किस प्रकार बैठना चाहिये?
शरीर, गरदन और मस्तक को एक सूत (सीध) में अचल करके तथा इधर-उधर न देखकर केवल अपनी नासिका के अग्रभाग को देखते हुए स्थिर होकर बैठे।।13।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
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