व्यास तथा श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को यज्ञ के लिए आज्ञा देना

महाभारत आश्वमेधिक पर्व के अनुगीता पर्व के अंतर्गत अध्याय 71 में व्यास तथा श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को यज्ञ के लिए आज्ञा देने का वर्णन हुआ है।[1]

व्यास तथा श्रीकृष्ण द्वारा युधिष्ठिर को यज्ञ के लिए आज्ञा देना

इसके थोड़े दिनों बाद महातेजस्‍वी सत्‍यवतीनन्‍दन व्‍यास जी हस्‍तिनापुर में पधारे। कुरुकुल तिलक समस्‍त पाण्‍डवों ने उनका यथोचितपूजन किया। फिर वृष्‍णि एवं अन्‍धकवंशी वीरों के साथ वे उनकी सेवा में बैठ गये।

वहाँ नाना प्रकार की बातें करके धर्मपुत्र युधिष्ठिर ने व्‍यास जी से इस प्रकार कहा। ‘भगवन! आपकी कृपा से जो वह रत्‍न लाया गया है, उसका अश्‍वमेध नामक महायज्ञ में मैं उपयोग करना चाहता हूँ। ‘मुनिश्रेष्‍ठ! मैं चाहता हूँ कि इसके लिये आपकी आज्ञा प्राप्‍त हो जाय, क्‍योंकि हम सब लोग आप और महात्‍मा श्रीकृष्‍ण के अधीन है’। व्‍यास जी ने कहा– राजन! मैं तुम्‍हें यज्ञ के लिये आज्ञा देता हूँ। इसके बाद जो भी आवश्‍यक कार्य हो, उसे प्रारम्‍भ करो। विधिपूर्वक दक्षिणा देते हुए अश्‍वमेध यज्ञ का अनुष्‍ठान करो। राजेन्‍द्र! अश्‍वमेध यज्ञ समस्‍त पापों का नाश करके यजमान को पवित्र बनाने वाला है। उसका अनुष्‍ठान करके तुम पाप से मुक्‍त हो जाओगे, इसमें संशय नहीं है।[1]

श्रीकृष्‍ण द्वैपायन व्‍यास से सब बातों के लिये आज्ञा ले प्रवचन कुशल राजा युधिष्‍ठिर भगवान श्रीकृष्‍ण के पास जाकर इस प्रकार बोले- ‘पुरुषोत्तम महाबाहु अच्‍युत! आपको ही पाकर देवकी देवी उत्तम संतान वाली मानी गयी हैं। मैं आपसे जो कुछ कहूँ, उसे आप यहाँ सम्‍पन्‍न करें। ‘यदुनन्‍दन! हम आपके ही प्रभाव से प्राप्‍त हुई इस पृथ्‍वी का उपभोग कर रहें हैं। आपने ही अपने पराक्रम और बुद्धि बल से इस सम्‍पूर्ण पृथ्‍वी को जीता है। ‘दशार्हनन्‍दन! आप ही इस यज्ञ की दीक्षा ग्रहण करें; क्‍योंकि आप हमारे परम गुरु हैं। आपके यज्ञानुष्‍ठान पूर्ण कर लेने पर निश्‍चय ही हमारे सब पाप नष्‍ट हो जायँगे। ‘आप ही यज्ञ, अक्षर, सर्वस्‍वरूप, धर्म, प्रजापति एवं सम्‍पूर्ण भूतों की गति हैं– यह मेरी निश्‍चित धारणा है।’ भगवान श्रीकृष्‍ण ने कहा– महाबाहो! शत्रुदमन नरेश! आप ही ऐसी बात कह सकते हैं। मेरा तो यह दृढ़ विश्‍वास है कि आप ही समपूर्ण भूतों के अवलम्‍ब हैं। राजन! समस्‍त कौरव वीरों में एकमात्र आप ही धर्म से सुशोभित होते हैं। हम लोग आपके अनुयायी हैं और आपको अपना राजा एवं गुरु मानते हैं। इसलिए भारत! आप हमारी अनुमति से स्‍वयं ही इस यज्ञ का अनुष्‍ठान कीजिये तथा हम लोगों में से जिसको जिस काम पर लगाना चाहते हों, उसे उस काम पर लगने की आज्ञा दीजिये। निष्‍पाप नरेश! मैं आपके सामने सच्‍ची प्रतिज्ञा करता हूँ कि आप जो कुछ कहेंगे, वह सब करूँग। आप राजा हैं, आपके द्वारा यज्ञ होने पर भीमसेन, अर्जुन, नकुल और सहदेव को भी यज्ञानुष्‍ठान का फल मिल जायगा।[2]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 71 श्लोक 1-17
  2. महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 71 श्लोक 18-26

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