कपिला गौ के दस भेद

महाभारत आश्वमेधिक पर्व के वैष्णव धर्म पर्व के अंतर्गत अध्याय 92 में कपिला गौ के दस भेद का वर्णन हुआ है।[1]

कृष्ण द्वारा कपिला गौ के दस भेद

ब्रह्मा जी ने कपिला गौ के दस भेद बतलाये हैं। पहली स्‍वर्णकपिला[2], दूसरी गौरपिंगला[3], तीसरी आरक्‍तपिंगाक्षी[4], चौथी गलपिंगला[5], पांचवीं बभ्रुवर्णाभा[6], छठी श्‍वेतपिंगला[7], सातवीं रक्‍तपिंगाक्षी[8], आठवीं खुरपिंगला[9], नवीं पाटला[10] और दसवीं पुच्‍छपिंगलाज[11]– ये दस प्रकार की कपिला गौंए बतलायी गयी हैं, जो सदा मनुष्‍यों का उद्धार करती हैं। ‘नरेश्‍वर! वे मंगलमयीख पवित्र और सब पापों को नष्‍ट करने वाली हैं। गाडी खींचने वाले बैलों को भी ऐसे ही दस भेद बताये गये हैं। ‘उन बैलों को ब्राह्मण ही अपनी सवारी में जोते। दूसरे वर्ण का मनुष्‍य उनसे सवारी का काम किसी प्रकार भी न ले। ब्राह्मण भी कपिला गौ को खेत या रास्‍ते में न जोते। ‘गाडी में जुते रहने पर उन बैलों को हुंकार की आवाज देकर अथवा पत्‍तेवाली टहनी से हांके। डंडे से, छड़ी से और रस्‍सी से मारकर न हांके। ‘जब बैल भूख– प्‍यास और परिश्रम से थके हुए हों तथा उनकी इन्‍द्रियां घबरायी हुई हों, तब उन्‍हें गाड़ी में न जोते।

जब तक बैलों को खिलाकर तृप्‍त न कर ले तब तक स्‍वयं भी भोजन न करे। उन्‍हें पानी पिलाकर ही स्‍वयं जलपान करे। ‘सेवा करने वाले पुरुष की कपिला गौएं माता और बैल पिता हैं। दिन के पहले भाग में ही भार ढोने वाले बैलों को सवारी में जोतना उचित माना गया है।’ ‘दिन के मध्‍य भाग में– दुपहरी के समय उन्‍हें विश्राम देना चाहिये; किंतु दिन के अन्‍तिम भाग में अपनी रुचि के अनुसार बर्ताव करना चाहिये अर्थात आवश्‍यकता हो तो उनसे काम ले और न हो तो न ले। जहाँ जल्‍दी का काम हो अथवा जहाँ मार्ग में किसी प्रकार का भय आने वाला हो, वहाँ विश्राम के समय भी यदि बैलों को सवारी में जोते तो पाप नहीं लगता।

ब्राह्मण को दान करने का वर्णन

‘पाण्‍डुनन्‍दन! परंतु जो विशेष आवश्‍यकता न होने पर भी ऐसे समय में बैलों को गाड़ी में जोतता है, उसे भ्रूण– हत्‍या के समान पाप लगता है और वह रौरव नरक में पड़ता है। ‘नराधिप! जो मोहवश बैलों के शरीर से रक्‍त निकाल देता है, वह पापात्‍मा उस पाप के प्रभाव से नि:सदेह नरक में गिरता है। ‘वह सभी नरकों में सौ- सौ वर्ष रहकर इस मनुष्‍य लोक में बैल का जन्‍म पाता है। ‘अत: जो मनुष्‍य संसार से मुक्‍त होना चाहता हो, उसे कपिला गौ का दान करना चाहिये। ‘सब प्रकार के यज्ञों में दक्षिणा देने के लिये कपिला गौ की सृष्‍टि हुई, इसलिये द्विजातियों को यज्ञ में उनकी दक्षिणा अवश्‍य देनी चाहिये।

‘जो मनुष्‍य अग्‍निहोत्र के होम के लिये अमित तेजस्‍वी एवं धनहीन श्रोत्रिय ब्राह्मण को प्रयत्‍नपूर्वक कपिला गौ दान में देता है, वह उस दान से शुद्धचित्त होकर मेरे परमधाम में प्रतिष्‍ठित होता है। ‘जो मनुष्‍य कपिला के सींग और खुरों में सोना मढ़ाकर उसे विषुवयोग में अथवा उत्‍तरायण– दक्षिणायन के आरम्‍भ में दान करता है, उसे अश्‍वमेध यज्ञ का फल मिलता है तथा उस पुण्‍य के प्रभाव से वह मेरे लोक में जाता है। ‘एक हजार अग्‍निष्‍टोम के समान एक वाजपेय- यज्ञ होता है। एक हजार वाजपेय के समान एक अश्‍वमेध होता है और एक हजार अश्‍वमेध के समान एक राजसूय – यज्ञ होता है।

‘कुरुश्रेष्‍ठ पाण्‍डव! जो मनुष्‍य शास्‍त्रोक्‍त विधि से एक हजार कपिला गौओं का दान करता है, वह राजसूय– यज्ञ का फल पाकर मेरे परमधाम में प्रतिष्‍ठित होता है ; उसे पुन: इस लोक में नहीं लौटना पड़ता। ‘दान में हुई गौ अपने विभिन्‍न गुणों द्वारा कामधेनु बनकर परलोक में दाता के पास पहुँचती है।

वह अपने कर्मों से बंधकर घोर अन्‍धकारपूर्ण नरक में गिरते हुए मनुष्‍य का उसी प्रकार उद्धार कर देती है, जैसे वायु के सहारे से चलती हुई नाव मनुष्‍य को महासागर में डूबने ने बचाती है। ‘जैसे मन्‍त्र के साथ दी हुई ओषधि प्रयोग करते ही मनुष्‍य के रोगों का नाश कर देती है, उसी प्रकार सुपात्र को दी हुई कपिला गौ मनुष्‍य सब पापों को तत्‍काल नष्‍ट कर डालती है। ‘जैसे सांप केंचुल छोड़कर नये स्‍वरूप को धारण करता है, वैसे ही पुरुष कपिला गौ के दान से पाप – मुक्‍त होकर अत्‍यन्‍त शोभा को प्राप्‍त होता है। ‘जैसे प्रज्‍जवलित दीपक घर में फैले हुए अन्‍धकार को दूर कर देता है, उसी प्रकार मनुष्‍य कपिला गौ का दान करके अपने भीतर छिपे हुए पाप को भी निकाल देता है। ‘जो प्रतिदिन अग्‍निहोत्र करने वाला, अतिथि का प्रेमी, शूद्र के अन्‍न से दूर रहनेवाला, जितेन्‍द्रीय, सत्‍यवादी तथा स्‍वाध्‍यायपरायण हो, उसे दी हुई गौ परलोक में दाता का अवश्‍य उद्धार करती है।’[12]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 92 वैष्णव धर्म पर्व भाग-34
  2. सुवर्ण के समान पीले रंगवाली
  3. गौर तथा पीले रंग वाली
  4. कुछ लालिमा लिए हुए पीले नेत्रों वाली
  5. जिसके गरदन के बाल कुछ पीले हों
  6. जिसका सारा शरीर पीले नेत्रोंवाली
  7. जिसका सारा शरीर पीले रंग रोमवाली
  8. सुर्ख और पीले हों।
  9. जिसके खुर पीले रंग के हों।
  10. जिसका हल्का लाल रंग हो।
  11. जिसकी पूँछ के बाल पीले रंग के हों।
  12. महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 92 वैष्णव धर्म पर्व भाग-35

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