कपिला गौ में देवताओं के निवासस्थान का वर्णन

महाभारत आश्वमेधिक पर्व के वैष्णव धर्म पर्व के अंतर्गत अध्याय 92 में कपिला गौ में देवताओं के निवासस्थान का वर्णन हुआ है।[1]

कृष्ण द्वारा गौ में देवताओं के निवासस्थान का वर्णन

‘राजन! इसलिये परलोक में हित चाहने वाले पुरुष को कपिला गौ का दान अवश्‍य करना चाहिये। जिस समय अग्‍निहोत्री ब्राह्मण को कपिला गौ दान में दी जाती है, उस समय उसके सींगों के ऊपरी भाग में विष्‍णु और इन्‍द्र निवास करते हैं। ‘सींगों की जड़ में चन्‍द्रमा और वज्रधारी इन्‍द्र रहते हैं।

सींगों के बीच में ब्रह्मा तथा ललाट में भगवान शंकर का निवास होता है।’ ‘दोनों कानों में अश्‍विनीकुमार, नेत्रों में चन्‍द्रमा और सूर्य, दांतों में मरुद्गण, जिव्‍हा में सरस्‍वती, रोम कूपों में मुनि, चमड़े में प्रजापति एवं श्‍वासों में षडंग, पद और क्रम सहित चारों वेदों का निवास है। ‘नासिका– छिद्रों में गन्‍ध और सुगन्‍धित पुष्‍प, नीचे के ओठ में सब वसुगुण तथा मुख में अग्‍नि निवास करते हैं। ‘कक्षा मे साध्‍य– देवता, गरदन में पार्वती, पीठ पर नक्षत्रगण, ककुद के स्‍थान में आकाश, अपान में सारे तीर्थ, मूत्र में साक्षात गंगाजी तथा गोबर में आठ ऐश्‍वर्यों से सम्‍पन्‍न लक्ष्‍मी जी रहती हैं।

‘नासिका में परम सुन्‍दरी ज्‍येष्‍ठा देवी, नितम्‍बों में पितर एवं पूंछ में भगवती रमा रहती हैं। ‘दोनों पसलियों में सब विश्‍वदेव स्‍थित हैं और छाती में प्रसन्‍नचित्‍त शक्‍तिधारी कार्तिकेय रहते हैं। ‘घुटनों और ऊरुओं में पांच वायु रहते हैं, खुरों के मध्‍य में गन्‍धर्व और खुरों में अग्रभाग में सर्प निवास करते हैं। ‘जल से परिपूर्ण चारों समुद्र उसके चारों स्‍तन हैं।[1]

रति, मेधा, स्‍वाहा, श्रद्धा, शान्‍ति, धृति, स्‍मृति, कीर्ति, दीप्‍ति, क्रिया, तुष्‍टि, संतति, दिशा और प्रदिशा आदि देवियाँ सदा कपिला गौ का सेवन किया करती हैं। ‘देवता, पितर, गन्‍धर्व, अप्‍सराएं, लोक, द्वीप, समुद्र, गंगा आदि नदियाँ तथा अंगों और यज्ञों सहित सम्‍पूर्ण वेद नाना प्रकार के मंत्रों से कपिला गौ की प्रसन्‍नतापूर्वक स्‍तुति किया करते हैं। विद्याधर, सिद्ध, भूतगण और तारागण– ये कपिला गौ को देखकर फूलों की वर्षा करते हैं हर्ष में भरकर नाचते हैं।

‘वे कहते हैं– ‘सम्‍पूर्ण देवताओं से वन्‍दित पुण्‍यमयी कपिलादेवी! तुम्‍हें नमस्‍कार है। ब्रह्मा जी ने तुम्‍हें अग्‍निकुण्‍ड से उत्‍पन्‍न किया है। तुम्‍हारी प्रभा विसतृत और शक्‍ति महान है। कपिलादेवी! समस्‍त तीर्थ तुम्‍हारे ही स्‍वरूप हैं और तुम सबका शुभ करने वाली हो।’ ‘समस्‍त देवता आकाश में खड़े होकर कहा करते हैं– ‘अहो! यह कपिला गौ रूपी रत्‍न कितना पवित्र और कितना उत्तम है! यह सब दु:खों को दूर करने वाला है। अहा! यह धर्म से उपार्जित, शुद्ध, श्रेष्‍ठ और महान धन है।’[2]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 92 वैष्णव धर्म पर्व भाग-36
  2. महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 92 वैष्णव धर्म पर्व भाग-37

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