महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
खजाने की खोज
पौत्र के जन्म की खुशी में नाच-गाने और बड़ी-बड़ी ज्यौनारें हुईं। कुन्ती माता भी अपने पड़पोते का मुख देखने के लिए कुछ दिन के वास्ते जंगल से रनिवास पधारीं, कुछ दिनों तक बड़ी चहल-पहल रही। फिर कृष्ण से सलाह करके महाराज ने शुभमुहूर्त में व्यासदेव के बतलाये हुए खजाने की खोज में स्वयं जाने का निश्चय किया। राज-काज की कुशल व्यवस्था मंत्रियों के ऊपर छोड़कर पांचों भाई मुंजवान पर्वत पर गये। वे अपने पुरोहित को भी साथ ले गये थे। मुंजवान पर्वत पहुँच कर धर्मराज ने पहले शंकर जी की पूजा की। इस समय आज के मुन्जान, बल्ख, बुखारा और तुर्किस्तान आदि देशों में शंकर जी ही महादेव मान कर पूजे जाते थे। इसलिए धर्मराज युधिष्ठिर ने मुन्जवान पर्वत पर शंकर जी की पूजा-अर्चना बड़ी धूम-धाम से की। पूजा करके गन्ध आदि पूजा की सामग्री लेकर धर्मराज व्यासदेव के बतलाये हुए स्थान पर गये। व्यास जी की बतलाई हुई सारी निशानियां देखकर उन्होंने उस भूमि की पूजा करायी। फिर दो-दो, चार-चार फावड़े मिट्टी हर पाण्डव ने अपने हाथों से खोदी। फिर यह काम मजदूरों को सौंप दिया। मजदूरों के सामूहिक कार्य से थोड़ी ही देर में वह स्थान निकल आया जहाँ गुप्त खजाने का द्वारा था। पत्थर की चट्टियां हटाकर तहखाने का द्वारा खोला और वहाँ से उन्होंने सारा सोना हस्तिनापुर लाद कर लाने के लिए कई हजार ऊंटों, घोड़ों और न जाने कितने हाथियों आदि जानवरों का इस्तेमाल किया। राजा मरुत हेतिकुल या हिट्टी कुल का बड़ा प्रतापी राजा हुआ था। उसने मिश्र और अल्ताई (सुमेरु) की सोने की खानें अपने अधिकार में कर रखी थीं उसका जमा किया हुआ धन उसके काम न आकर बड़े आड़े समय में पाण्डवों को मिला था। विधि का विधान भी कभी-कभी बड़ा ही विचित्र और चमत्कारी लगता है। हस्तिनापुर पहुँचते ही यज्ञ की तैयारियां होने लगीं। बड़े-बड़े यज्ञकर्ता ऋषि न्योते गये। महर्षि व्यास जी ने यज्ञ का मुहूर्त विचारा। यज्ञ में काम आने वाली कुशा वगैरह साधारण चीजें भी अश्वमेध यज्ञ में सोने की हुआ करती हैं। वे सब बनीं। विधिवत यज्ञ आरम्भ हुआ और यज्ञ का घोड़ा छोड़ा गया। महाबली अर्जुन इस घोड़े की रक्षा के लिए तैनात थे जहाँ यह घोड़ा जायेगा वहीं वे भी जायेंगे। अगर कोई यज्ञ के घोड़े की राह रोकेगा तो उसे महाबली अर्जुन और उनकी परम प्रतापी सेना का सामना करना पड़ेगा। इस प्रकार अर्जुन दिग्विजय करने और राजकोष के लिए धन बटोरने निकले। धर्मराज युधिष्ठिर ने भीमसेन को सारे साम्राज्य का राज-काज देखने पर नियुक्त किया। नकुल को राजधानी के सारे कचहरी-कार्यालयों पर निगरानी रखने का भार सौंपा। अपने सबसे छोटे भाई सहदेव को उन्होंने सबसे कठिन जिम्मेदारी सौंपी। उनका काम यह था कि वे राजकुल के हर व्यक्ति को सन्तुष्ट रखें। सबके साथ न्याय हो, और वे लोग आपस में कोई षड्यंत्र करने का मौका न पा सकें। इस तरह सारा प्रबन्ध करके स्वयं धर्मराज ने यज्ञ की दीक्षा लेने के कारण अब निश्चिन्त होकर यज्ञशाला में ही नियम पूर्वक रहना शुरू कर दिया। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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