महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
द्रौपदी स्वयंवर
यह सुनकर ब्राह्मणों की टोली में बैठे हुए युधिष्ठिर ने अर्जुन से आंखों-आंखों में कहा कि उठो, अब समय आ गया है। भाई की आज्ञा पाते ही उनके पैर छूकर अर्जुन उठे और लक्ष्य वेध करने के लिए आगे बढ़े। ब्राह्मणों की टोली में यह देखकर बहुत से लोग हंस पड़े। वे सोचते थे कि जो काम बड़े-बड़े क्षत्रिय वीरों से नहीं हुआ, वह भला एक ब्राह्मण कुमार कैसे कर पायेगा। बहुत से पण्डितों को यह चिन्ता हुई कि इस ब्राह्मण नवयुवक की ढिठाई के कारण राज्य के लोग क्रुद्ध होकर कहीं ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देना बन्द न कर दें। लेकिन बहुत से ऐसे समझदार ब्राह्मण भी थे जो कहते थे कि जिस काम को करने के लिए बड़े-बड़े लोग बुलाये गये थे और जब वे असफल हो गए हैं तो जो भी यह काम करके दिखलाये, उसकी सराहना हमें अवश्य करनी होगी। यह सब बातें हो ही रही थीं कि तापस वेशधारी सुन्दर और बलवान अर्जुन लक्ष्य के पास जाकर खड़ा हो गया। उसने सहज भाव से खिलौने की तरह धनुष उठाया और खेल ही खेल में उसकी प्रत्यंचा भी चढ़ा दी। अब लोग-बाग आश्चर्य से अर्जुन की तरफ देखने लगे। अर्जुन ने धनुष के पास रखे हुए पांचों बाण भी उठा लिये। फिर तेल-कुण्ड के पास खड़े होकर पल भर नाचती मछली की परछाई देखते रहे और एक साथ पांचों बाण धनुष पर चढ़ाकर इस तरह छोड़े कि एक से मछली की आंख छिद गई और चार से वह चक्र ही टूट गया जिस पर मछली नाच रही थी। चारों ओर जय-जयकार मच गया। दास-दासियां फूल बरसाने लगे। सूत-चारण स्तुतियां गाने लगे, बाजों पर बधावे बजने लगे और द्रौपदी ने प्रसन्न मन से अर्जुन के गले में जयमाला डाल दी। यह देखकर बड़े-बड़े महाराजों के गर्व-गुमान भड़के। सबने मिलकर तय किया कि हम सब मिलकर द्रुपद और उनकी सेना को मारकर अपने अपमान का बदला लेंगे। यह देखकर भीमसेन भी उठ खड़े हुए। सभी मण्डप के बाहर एक पेड़ उखाड़ कर उन्होंने बिगड़े हुए राजाओं के सिपाहियों को वह मार मारनी शुरू की कि सबको अपनी छठी का दूध याद आ गया। अर्जुन के बाणों की वर्षा ने सभी को चौकन्ना कर दिया। सभी सोचने लगे कि भीम और अर्जुन के सिवा ऐसे वीर भला और कौन हो सकते हैं। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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