महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
वेन और पृथु की कथा
मनुष्य के आदि पुरखों की कथाएं सुनाते हुए पितामह भीष्म बोले, “हे युधिष्ठिर, जो अपने पुरखों के इतिहास को सही ढंग से पहचानता, जानता और समझता है, वह मानव सभ्यता के विकास को सफलतापूर्वक आगे बढ़ कर यश पाता है। हे युधिष्ठिर! हमारी यह आर्य सभ्यता बड़े-बड़े योद्धाओं और ऋषि-महर्षियों ने बड़े परिश्रम, बड़ी सूझ-बूझ और लगन से सारी दुनिया में बैठायी थी। उन्होंने जंगली जातियों से जंगलीपन छुड़वाकर उन्हें सभ्य बनाया।"" खानों से सोना-चांदी, हीरे मानिक-मणियां आदि का वैभव खोद निकाला। समुद्र के गर्भ से मोती निकाले। यह सुन्दर सुन्दर भवन और सुखद जीवन जो आज हम भोग रहे हैं वह इन्हीं पुरखों की कृपा का फल है। हमारे इन्द्र, वरुण और आदित्य जैसे प्रतापी राजा और भृगु, अत्रि, वशिष्ठ, पुलह, पुलस्ति, विश्वामित्र आदि महर्षियों ने दुनिया में ज्ञान और सुशासन का उजाला कर दिया। भीष्म पितामह सुनाने लगे, “हे युधिष्ठिर, मानव सभ्यता को निकास देने में जैसे पहले मनुओं ने भी हमारा बड़ा उपकार किया। उनके समय में मनुष्य जाति का जो वर्ग सभ्य और संस्कारवान बना वह देव जाति कहलाया। देवलोग शुरु में तो बड़े सभ्य और धार्मिक लोग रहे। बाद में दूसरी जातियों पर शासन करते-करते उनमें घमण्ड, स्वार्थपरता और क्रूरता जाग उठी, वे अत्याचारी भी हो गये। अपने कर्मों और व्यवहार में उन्होंने नीति-अनीति का विचार करना छोड़ दिया। हे युधिष्ठिर, शासक वर्ग के लोग जब-जब अन्यायी और अत्याचारी हो जाते हैं तब-तब उनके अन्याय को दबाने के लिए मनुष्य जाति अपने भीतर से एक नयी और न्यायशील चेतना जागृत करती है। इस सामाजिक चेतना को बल देने के लिए नियति भी मानो अदृश्य से दृश्यमान होकर सहायक बनती है। हे पुत्र! मनुष्य अर्थात् नेताओं का अत्याचार जब अति पर पहुँच गया तब समाज से एक नया नेता जागा। वह आगे चलकर इन्द्र कहलाया। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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