महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
ध्रुव की कथा
ध्रुव बोला- “मां तब मैं अपने आप को परमपिता की गोद में बैठने का अधिकारी बनाऊंगा। मुझे परमपिता का ठिकाना बताइए।” “वह कठिन तपस्या से मिलते हैं मेरे लाल!” “तब मैं तपस्या करूंगा। वह कैसे होती हैं मां!” पांच वर्ष के नन्हें बालक की बात मां के कलेजे में मुक्का मार गयी। सुनीति रानी मन ही मन विचार में पड़ गयीं। एक ओर जहाँ अपने पुत्र की आत्म-प्रतिष्ठा का सवाल उनके मन में आता था, वहाँ तो वह मन से यही चाहती थीं कि मेरे बेटे को सबसे ऊंचा पद, परमपिता के दर्शन, वरदान और उनका अपार स्नेह मिले। परन्तु दूसरी ओर मां का ममता भरा कायर मन डरता भी था कि मेरा सुकुमार नन्हा-मुन्ना तपस्या की कठिनाइयों को कैसे झेल सकेगा। लेकिन सुनीति रानी अपने नाम के अनुसार ही सदा सुनीति पर ही चलने वाली थीं। उन्होंने सोचा कि बच्चे की परीक्षा लेने के लिए हम अपने मन का भय चित्रित करेंगे। अगर वह भय से तप का मार्ग छोड़ देगा तो अच्छा ही है, और यदि न माने तो फिर आगे के उपायों पर विचार किया जावेगा, मां ने बच्चे को डराया, कि तपस्या में भूखे रहना पड़ता है, प्राणायाम सीखना पड़ता है। और प्राणायाम में कोई गलती हो गई तो आदमी पागल हो जाता है। इसके अतिरिक्त जंगल के जानवर शेर, भालू आदि सताते हैं। काले नाग और अजगर चींटियों की तरह धरती पर डोला करते हैं। तपस्या करना और भगवान के दर्शन करना आसान काम नहीं है।" परन्तु जितना ही अधिक सुनीति रानी अपने बच्चे को डराना चाहा उतना ही बच्चे का हठ प्रबल होता गया। उसने कहा- “मां तुमने बहुत अच्छा किया जो सारी कठिनाइयां मेरे आगे बखान की लेकिन मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि इन सारी कठिनाइयों को जीत लूंगा और परमपिता की गोद में बैठूंगा। तुम मुझे आशीर्वाद दो और किसी अच्छे गुरु की सेवा में डाल दो, जिससे योग मार्ग से परमपिता को पा लूं।” रानी बोली- “बेटा मैं तुम्हें दूर देश में तुम्हारे पितामह के तपोवन में लिये चलती हूँ। उनसे बढ़कर सच्चा मार्ग तुम्हें और कोई न दिखला सकेगा।” |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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