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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
अश्वत्थामा की प्रतिज्ञा
द्रोणाचार्य के कानों में भी यह भनक गई। उनके हाथ-पैर ढीले पड़ने लगे। अपने पुत्र के मोह में पड़कर ही तो उन्होंने यह नौकरी की थी। उसी के स्वार्थ के लिए ही तो वे दुर्योधन की जली-कटी बातें सुनकर भी उसका साथ निभा रहे थे। लेकिन उन्हें यह भरोसा नहीं होता था कि अश्वत्थामा सचमुच ही मारा गया होगा। तभी धर्मराज युधिष्ठिर की आवाज उनके कानों में पड़ी। “अश्वत्थामा मारा गया, नर या कुंजर मारा गया।” किन्तु युधिष्ठिर के कुन्जर यानि हाथी शब्द कहते-कहते श्रीकृष्ण ने अपना शंख बड़ी जोर से बजा दिया। शंख के स्वर में युधिष्ठिर की आधी बात डूब गई, लेकिन युधिष्ठिर के कहने से द्रोणाचार्य को यह विश्वास हो गया कि उनका बेटा मारा जा चुका है। बस, उन्होंने अपने हथियार पटक दिये और स्वयं भी मरने के लिए शांत होकर बैठ गये। राजा द्रुपद का बेटा धृष्टद्युम्न अपने बाप का बदला लेने के लिए उन पर झपट पड़ा और निहत्थे गुरु का गला काट दिया। द्रोणाचार्य के मरने की खबर कौरव सेना के लिए महान वज्रपात के समान थी। जिस समय झूठ का सहारा लेकर द्रोणाचार्य का वध किया गया था उस समय अश्वत्थामा चेदि पांचाल, प्रभद्रक आदि राज्यों की सम्मिलित सेनाओं से लड़ रहे थे। उन्हें पिता के मारे जाने की खबर उस समय न लग सकी। सूर्यास्त के बाद अपने शत्रुओं को बुरी तरह से छकाकर अपनी विजय से सन्तुष्ट अश्वत्थामा जब मस्त हाथी की तरह झूमते हुए अपनी छावनी के पास पहुँचे, और लोगों के चेहरों पर गहरी उदासी देखी तो एक व्यक्ति से कारण पूछा। अपने पिता की हत्या का समाचार सुनकर वे पहले तो ठगे से रह गये, परन्तु बाद में उन्हें भयंकर क्रोध चढ़ आया। वे सीधे दुर्योधन के निवास पर गये। कर्ण, कृपाचार्य, दुःशासन आदि सभी बड़े-बड़े महारथी शोक में मुंह लटकाये वहाँ बैठे हुए थे। अश्वत्थामा को देखकर दुर्योधन उठे और उन्हें कलेजे से लगा लिया। आंखों में आंसू भर कर दुर्योधन ने कहा- “गुरु जी के न रहने से केवल तुम्हीं अनाथ नहीं हुए सखा, हम सभी पर दुख की गाज गिरी है। पापी पाण्डवों ने गुरु जी को धोखा दिया और कायर धृष्टद्युम्न ने असहायावस्था में उनका सिर काट डाला।” सारी कथा सुनकर अश्वत्थामा गरज उठे, उन्होंने कहा- “इन गुरुघाती पाण्डवों को अब मैं कदापि जीवित नहीं छोड़ूंगा।” अश्वत्थामा के क्रोध को सभी महारथियों ने बल दिया। सभी ने अपने-अपने ढंग से यह प्रतिज्ञा की कि पाण्डवों से गुरु-हत्या का बदला अवश्य लिया जायगा। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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