भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्री शिवतत्त्व
जब प्राणी का मन प्राकृत कान्ता के सौन्दर्य, माधुर्यादि में आसक्त हो जाता है, तब अनन्तब्रह्माण्डगत सौन्दर्य, माधुर्यादि बिन्दुओं के उद्गम स्थान सौन्दर्यादि सुधाजलनिधि भगवान के मधुर स्वरूप में क्यों न आसक्त होगा? भगवान का हृदय भास्वती भगवती अनुकम्पा देवी के परतन्त्र है। संसार में माँगने वाला किसी को अच्छा नहीं लगता, उससे सभी घृणा करते हैं। परन्तु भगवान शंकर तो आक, धतूर, अक्षत, बिल्वपत्र, जलमात्र चढाने गला बजाने से ही सन्तुष्ट होकर सब कुछ देने को प्रस्तुत हो जाते हैं। ब्रह्मा जी पार्वती से अपना दुखड़ा रोते हुए कहते हैं।
जो पुरुष तीन बार महादेव, महादेव, महादेव, इस तरह भगवान का नाम उच्चारण करता है, भगवान एक नाम से मुक्ति देकर शेष दो नाम से उसके ऋणी हो जाते है। |
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