भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
संकल्पबल
नृसिंहतापनीय उपनिषदादि ग्रन्थों में यह भी स्पष्ट है कि स्त्री और शूद्र सावित्री, प्रणव, यजु आदि का उच्चारण न करे। उनको उपदेश करने वाला और वे दोनों ही ऐसा करने से अधोगति को प्राप्त होते हैं। इस विषय में द्वेष की कल्पना व्यर्थ है, माँ केवल हितबुद्धि से ही ऐसा करती है। इसी तरह शास्त्रों ने शूद्रों को वेदादि शास्त्रों का सार इतिहास-पुराणादि श्रवण द्वारा ज्ञात कराकर वेदादि के अध्ययन का निषेध किया है। जैसे हर एक यन्त्र से हर एक चीज नहीं बनती, वैसे ही हर एक शरीर से हर एक मन्त्र का उच्चारण ठीक नहीं। शास्त्रों के द्वारा ही इसका निर्णय होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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