भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
भगवत्कथामृत
जिस कथा में भगवान के गुणों का वर्णन होता है, वही सत्य, मंगल, पुण्य, रम्य, रुचिर, नित्य नवनवायमान मन का महोत्सव रूप और शोकार्णव शोषण है। कोई वाक्प्रयोग चाहे कितना ही विचित्र शब्दावलि एवं अलंकारों से युक्त क्यों न हो, यदि जगत की पवित्र करने वाले भगवान के मंगलमय यश से निबद्ध नहीं है, तो वह हंसतीर्थं नहीं, अपितु वायसतीर्थ है। अतः विवेकियों का परम कर्तव्य है कि व्यक्तिगत रूप से प्रतिदिन नियमपूर्वक नियत समय में भगवान की परम पवित्र कथाओं का आदर, श्रद्धापूर्वक श्रवण करे और अधिकारानुसार स्वयं भी दूसरों को सुनाये। प्रत्येक ग्रामों, मुहल्लों में किसी देवमन्दिरादि में कम-से-कम महीने में दो-चार दिन भगवत्कथा का आयोजन होना परम आवश्यक है। इस मर्त्यलोक में भगवान की कथा साक्षात् अमृत है, अनेक शोक-दुःख से सन्तप्त प्राणियों के ताप को अपहरण करने में समर्थ है, शुक-सनकादि परम विवेकी सत्पुरुषों से स्तुत है, सकल पाप-पंक का शोषण करने वाली है, श्रवणमात्र से मंगलप्रद है और व्यासादि महर्षियों द्वारा जगती तल पर विस्तृत है, अतः सर्वार्थसाधक है। इसको श्रवण कराने वाले से बढ़कर अधिक दानकर्ता संसार में और कौन हो सकता है? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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