भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
निराकार से साकार
कोई लोग तो प्रकृति से पृथक् ही भगवान की अन्तरंगा शक्ति मानते हैं, कोई महाशक्ति के अन्तर्गत होने पर भी उसे दिव्य मानते हैं। जैसे गुलाब के बीज में कण्टक, पत्र, नाल, स्कन्धादि की उत्पादिनी शक्ति से सौन्दर्य-माधुर्य-सौरस्य-सौगन्ध्य-सम्पन्न फूल के उत्पन्न करने की शक्ति विलक्षण होती है, वैसे ही प्रपंचोत्पादिनी अन्याय शक्तियों की अपेक्षा सगुण, साकार भगवान के प्राकट्यानुकूला लीलाशक्ति में चमत्कारपूर्ण विलक्षणता रहती है। सारांश यह है कि शुद्ध परब्रह्म ही निराकार रूप से ही सगुण, साकार रूप में प्रकट होते हैं। तभी उनको भाव, कुभाव, अनख, आलस किसी तरह से भी भजने से प्राणियों की सद्गति हो जाती है। इसीलिये कहा है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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