भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्री भगवती-तत्त्व
पूर्वोक्त रीति से भगवती के महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती ये तीन रूपप्रधान हैं। उपनिषदों में प्रकृति को ‘लोहित-शुक्ल-कृष्ण’ कहा गया है, क्योंकि उसमें रजः सत्त्व और तम यह तीन गुण होते हैं। किसी भी कार्य का सम्पादन करने के लिये हलचल, प्रकाश और अवष्टम्भ अर्थात रुकावट इन तीनों की अपेक्षा हुआ करती है। इनमें से एक के बिना कोई भी कार्य सम्पन्न नहीं होता, इसीलिये सृष्टि को त्रिगुणात्मिका कहा जाता है। प्रकाश सत्त्व है, हलचल रज अवष्टम्भ तम है। रज रक्त है, सत्त्व शुक्ल है, तम कृष्ण है। केवल निर्विकार, कूटस्थ चैतन्य कुछ कर नहीं सकता, गुणयोग से ही कार्य हो सकता है, अत: गुणों का आश्रयण करने से ही त्रिदेवी एवं त्रिदेव भी तीन रंग के ही हैं। शंकर सरस्वती ये दोनो भाई-बहन शुक्ल रूप के हैं। ब्रह्मा लक्ष्मी दोनों भाई-बहन रक्त वर्ण के हैं। विष्णु-गौरी ये दोनों भाई-बहन कृष्ण रंग के हैं। भाई-बहन ही प्रायः एक रंग के होते हैं, पति-पत्नी के एक रंग होने का नियम नहीं होता। इसीलिये शिव-गौरी, विष्णु-लक्ष्मी, ब्रह्मा-सरस्वती ये दम्पती एक रंग के नहीं हैं। गौरी की सरस्वती ननन्द्र है, स्वयं उसकी भ्रातृजाया (भावज) है, सरस्वती लक्ष्मी की भावज है, लक्ष्मी उसकी ननद है, लक्ष्मी गौरी की ननद है। इसीलिये शिव, विष्णु, ब्रह्मा में भी श्यालक एवं भगिनीपति का सम्बन्ध है। सृष्टि में हलचल और ज्ञान शक्ति दोनों की अपेक्षा होती है। रज की हलचल और सत्त्व की ज्ञान शक्ति ही सृष्टि कर सकती है, इसीलिये ब्रह्मा की पत्नी सरस्वती से सृष्टि होती है। तम की रुकावट से और रज की हलचल से पालन होता है, अत: विष्णुपत्नि लक्ष्मी से पालन होता है। सत्त्व के प्रकाश एवं तम के अवष्टम्भ से संहार होता है अतः शिवपत्नि गौरी से संहार होता है। सर्वसत्त्वमयी भगवती साकार होकर अनेक नामों वाली होती है, निराकररूप से तो किसी का भी शब्द से वाच्य नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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