विषय सूची
भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्री रासपञ्चाध्यायी
लोक में प्रायः देखा जाता है - काम द्वारा लोगों को कामना होती है, परन्तु यहाँ तो उन व्रजेन्द्रचन्द्र की अपूर्व छवि माधुरी पर काम भी मुग्ध हो गया। वह उन प्रभु पादार विन्द की नखमणि चन्द्रिका की छटा को दूर से ही देखकर इतना व्यामुग्ध हुआ कि अपनी सब सुध-बुध भूल गया, मूर्च्छित हो कर कही आप गिरा और कहीं धनुष; कुछ होश हाने पर उसने विचार किया, अब खूब उग्र तपस्या करके, कामिनी बनकर इस नखमणिचन्द्रिका का सेवन करूँ, तब जन्म सफल हो। वह पुंसत्त्व को मिटाकर स्त्रीत्व प्राप्ति के लिये तपस्या का निश्चय करता है- “कामैरपि कामितो देहो यस्य।” एक क्या, सैकड़ों और सहस्रों काम उस त्रिभङ्गललित के लावण्य पर न्यौछावर हो गये। अस्तु, प्राकृत मेघ में और इस मेघ में बहुत अन्तर है, वह पात्रा पात्र का विवेक नहीं करता, यह लताओं को भी प्रेमरस देता है-
उस महोमयी मूर्ति मेघ ने सब में प्रेम रस बरसाया। रसाल को परिपूर्ण ही किया। कदम्ब की तो बात ही क्या, उसे तो आत्म समर्पण ही कर दिया। उसी के प्रेमानन्द की वर्षा करने वाले हुए ‘कदा’ और उन्हें ‘वातीति कदम्बः।’ यह वह कदम्ब है। जिसने इसका सेवन किया, श्रीराधावेष्टित कृष्ण का - घनश्याम का - ध्यान किया, उसे यह श्रीश्यामसुन्दर को दे देता है। “अतः हे कदम्ब, हे सर्वानन्द दाता, हमें प्राणप्यारे को बतला दो” - “शंसन्तु कृष्णपदवीं रहितात्मनां नः।” ‘कदम्ब’ और ‘नीप’ एक ही वस्तु है, भेद इतना ही है कि नीप रजःप्रधान एवं बड़े पुष्प वाला होता है और कदम्ब के पुष्प छोटे होते हैं। “नयति-प्रापयति मोहनमिति नीपः।’’ इसकी भी व्रजांगनाओं ने खूब स्तुति की- “हे नीप, तुम पर मोहन बड़े मुग्ध रहते हैं, तुम्हारे बड़े-बड़े फूलों की माला उन्हें खब पसन्द है। तुम्हारी सुगन्ध उनको खूब प्रिय है। तुम्हारी ठण्डी छाया में बैठकर वे वंशी की मधुर ध्वनि से वृन्दावन को गुंजार देते हैं। हे मोहन के प्रिय सखा, जरा अपने मित्र का पता देकर हमें भी सुखी करो।” |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज