गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 86

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
तीसरा अध्याय
कर्मयोग


यस्‍त्‍वात्‍मरतिरेव स्‍यादात्‍मतृप्‍तश्‍च मानव:।
आत्‍मन्‍येव च संतुष्‍टस्‍तस्‍य कार्य न विद्यते।।17।।

पर जो मनुष्‍य आत्मा में रमण करने वाला है, जो उसी से तृप्‍त रहता है और उसी में संतोष मानता है, उसे कुछ करने को नहीं रहता।

नैव तस्‍य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्‍चन।
न चास्‍य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्‍यपाश्रय:।।18।।

करने, न करने में उसका कुछ भी स्‍वार्थ नहीं है। भूतमात्र में उसे कोई निजी स्‍वार्थ नहीं है।

तस्‍मादसक्‍त: सततं कार्य कर्म समाचार।
आसक्‍तो ह्मचरन्‍कर्म परमाप्‍नोति पूरुष:।।19।।

इसलिए तू तो संगरहित रहकर निरंतर कर्तव्‍य कर्म कर। असंग रहकर ही कर्म करने वाला पुरुष मोक्ष पाता है।

कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादय:।
लोकसंग्रहमेवापि संपश्‍यन्‍कर्तुमर्हसि।।20।।

जनकादिक ने कर्म से ही परमसिद्धि प्राप्‍त की। लोकसंग्रह की दृष्टि से भी तुझे कर्म करना उचित है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
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दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
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चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
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सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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