गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 87

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
तीसरा अध्याय
कर्मयोग


यद्यदाचरति श्रेष्‍ठस्‍तत्तदेवेतरा जन:।
स यत्‍प्रमाणं कुरुते लोकस्‍तदनुवर्तते।।21।।

जो-जो आचरण उत्तम पुरुष करते हैं, उसका अनुकरण दूसरे लोग करते हैं। वे जिसे प्रमाण बनाते हैं, उसका लोग अनुसरण करते हैं।

न मे पार्थास्ति कर्तव्‍यं त्रिषु लोकेषु किंचन।
नानवाप्‍तमवाप्‍तव्‍यं वर्त एव च कर्मणि।।22।।

हे पार्थ! मुझे तीनों लोकों में कुछ भी करने को नहीं है। पाने योग्‍य कोई वस्‍तु न पाई हो ऐसा नहीं है, तो भी मैं कर्म में लगा रहता हूँ।

टिप्‍पणी— सूर्य, चंद्र, पृथ्‍वी इत्‍यादि की अविराम और अचूक गति ईश्वर के कर्म सूचित करती है। ये कर्म मानसिक नहीं, किंतु शारीरिक गिने जायेंगे। ईश्वर निराकार होते हुए भी शारीरिक कर्म करता है, यह कैसे कहा जा सकता है, इस शंका की गुंजाइश नहीं है, क्योंकि वह अशारीरिक होने पर भी शरीरों की तरह आचरण करता हुआ दिखाई देता है। इसलिए वह कर्म करते हुए भी अकर्मी है और अलिप्‍त है। मनुष्‍य को समझना तो यह है कि जैसे ईश्वर की प्रत्‍येक कृति यंत्रवत काम करती है वैसे मुनष्‍य को भी बुद्धिपूर्वक किंतु विशेषत: यंत्रगति का अनादर करके स्‍वेच्‍छाचारी हो जाने में नहीं है, बल्कि ज्ञानपूर्वक उस गति का अनुकरण करने में है। अलिप्‍त रहकर, असंग रहकर, यंत्र की तरह कार्य करने से उसे घिस्‍सा नहीं लगता। वह मरने तक ताजा रहता है। देह अपने नियम के अनुसार समय पर नष्‍ट होती है, परंतु उसमें रहने वाला आत्‍मा जैसा था, वैसा ही बना रहता है।

यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्‍यतन्द्रित:।
मम वर्त्‍मानुवर्तन्‍ते मनुष्‍या: पार्थ सर्वश:।।23।।

यदि मैं कभी अंगड़ाई लेने के लिए भी रुके बिना कर्म में लगा न रहूँ तो, हे पार्थ ! लोग सब तरह से मेरे बर्ताव का अनुसरण करेंगे।

उत्‍सीदेयुरिमे लोका कुर्या कर्म चेहदम्।
संकरस्‍य च कर्ता स्‍यामुपहन्‍यामिया: प्रजा:।।24।।

यदि मैं कर्म न करूं तो ये लोक भ्रष्‍ट हो जायें; मैं अव्‍यवस्‍था का कर्ता बनूं और इन लोगों का नाश करूं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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