गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
सोलहवां अध्याय
दैवासुरसंपद् विभागयोग
तानहं द्विषत: क्रूरान्संसारेषु नराधमान्। इन नीच, द्वेषी, क्रूर, अमंगल नराधमों को मैं इस संसार की अत्यंत आसुरी योनी में बार-बार डालता हूँ। आसुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि । हे कौंतेय! जन्म-जन्म आसुरी योनी को पाकर और मुझे न पाने से मूढ़ लोग इससे भी अधिक अधम गति पाते हैं। त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मन: । आत्मा का नाश करने वाले नरक के ये त्रिविध द्वार हैं- काम, क्रोध और लोभ। इसलिए इन तीनों का मनुष्यों को त्याग करना चाहिए। एतैर्विमुक्त: कौन्तेय तमोद्वारैस्त्रिभिर्नर: । हे कौंतेय! इस त्रिविध नरक द्वार से दूर रहने वाला मनुष्य आत्मा के कल्याण का आचरण करता है और इससे परम गति को पाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज