गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
ग्यारहवां अध्याय
विश्वरूप दर्शन योग
अमी हित्वां सुरसंघा विशन्ति और यह देवों का संघ आपमें प्रवेश कर रहा है। भयभीत हुए कितने ही हाथ जोड़कर आपका स्तवन कर रहे हैं। महर्षि और सिद्धों का समुदाय 'जगत का कल्याण हो' कहता हुआ अनेक प्रकार से आपका यश गा रहा है। रुद्रादित्या वसवो ये च साध्या रुद्र, आदित्य, वसु, साध्यगण, विश्वेदेव, अश्विनीकुमार, मरुत, गरम ही पीने वाले पितर, गंधर्व, यक्ष, असुर, और सिद्धों का संघ ये सभी विस्मित होकर आपको निरख रहे हैं। रूपं महत्ते बहवक्त्रनेत्रं हे महाबाहो! बहुत मुख और आंखों वाला, बहुत हाथ, जंघा और पैरों वाला, बहुत पेटो वाला और बहुत दाढ़ों के कारण विकराल दीखने वाला विशाल रूप देखकर लोग व्याकुल हो गये हैं। वेसे मैं भी व्याकुल हो उठा हूँ। नभ:स्पृशं दीप्त्मनेकवर्णं आकाश का स्पर्श करते, जगमगाते, अनेक रंग वाले, खुले मुख वाले और विशाल तेजस्वी नेत्र वाले,आपको देखकर, हे विष्णु! मेरा हृदय व्याकुल हो उठा है और मैं धैर्य या शांति नहीं रख सकता। दंष्ट्राकरालानि च ते मुखानि प्रलयकाल के अग्नि के समान और विकराल दाढ़ों वाला आपका मुख देखकर न मुझे दिशाएं जान पड़ती हैं, न शांति मिलतीहै। हे देवेश! हे जगन्निवास! प्रसन्न होइए। अमी च त्वां धृतराष्ट्रस्य पुत्र: सब राजाओं के संघ सहित, धृतराष्ट्र के ये पुत्र, भीष्म, द्रोणाचार्य, यह सूतपुत्र कर्ण और हमारे मुख्य योद्धा, विकराल दाढ़ों वाले आपके भयानक मुख में वेगपूर्वक प्रवेश कर रहै हैं। कितनों के ही सिर चूर होकर आपके दांतों के बीच में लगे हुए दिखाई देते हैं। यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगा: |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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