गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
ग्यारहवां अध्याय
विश्वरूपदर्शनयोग
यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतंगा। जलते हुए दीपक में जैसे पतंग बढ़ते हुए वेग से पड़ते हैं, वैसे ही आपके मुख में भी सब लोग बढ़ते हुए वेग से प्रवेश कर रहे हैं। लेलिह्य से ग्रसमान: समन्ता- सब लोकों को सब ओर से निगलकर आप अपने धधकते हुए मुख से चाट रहे हैं। हे सर्वव्यापी विष्णु! आपका उग्र प्रकाश समूचे जगत का तेज से पूरित कर रहा है और तपा रहा है। आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो उग्ररूप आप कौन हैं सो मुझसे कहिए। हे देववर! आप प्रसन्न होइए। आप जो आदि कारण हैं उन्हे मैं जानना चाहता हूँ। आपकी प्रवृत्ति मैं नहीं जानता। श्रीभगवानुवाच श्री भगवान बोले- लोकों का नाश करने वाला, बढ़ा हुआ मैं काल हूँ। लोकों का नाश करने के लिए यहाँ आया हूँ। प्रत्येक सेना में जो ये सब योद्धा आये हुए हैं उनमें से कोई तेरे लड़ने से इन्कार करने पर भी बचने वाला नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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