गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 136

गीता माता -महात्मा गांधी

Prev.png
अनासक्तियोग
आठवां अध्याय
अक्षरब्रह्म्रयोग


पुरुष: स पर: पार्थ भक्‍त्‍या लभ्‍यस्‍त्‍वनन्‍यया।
यस्‍यान्‍त:स्‍थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम्।।22।।

हे पार्थ! इस उत्तम पुरुष के दर्शन अनन्‍य भक्ति से होते हैं। इसमें भूतमात्र स्थित हैं और यह सब उससे व्‍याप्‍त है।

यत्र काले त्‍वनावृत्तिमावृत्तिं चैव योगिन:।
प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्‍यामि भरतर्षभ।।23।।

जिस समय मरकर योगी मोक्ष पाते हैं और जिस समय मरकर उन्‍हें पुनर्जन्‍म प्राप्‍त होता है, वह काल है, भरतर्षभ! मैं तुझसे कहूंगा।

अग्निनर्ज्‍योतिरह: शुक्‍ल: षण्मासा उत्तरायणम्।
यत्र प्रयाता गच्‍छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जना:।।24।।

उत्तरायण के छ: महीनों मे, शुक्ल पक्ष में दिन को जिस समय अग्नि की ज्‍वाला उठ रही हो उस समय जिसकी मृत्‍यु होती है वह ब्रह्म को जानने वाला, ब्रह्म को पाता है।

धूमो रात्रिस्‍तथा कृष्‍ण:
षण्‍मासा दक्षिणायनम्।
तत्र चान्‍द्रमसं ज्‍योति
र्योगी प्राप्‍य निवर्तते।।25।।

दक्षिणायन के छ: महीनों में, कृष्‍ण पक्ष में, रात्रि में जिस समय धुआं फैला हुआ हो उस समय मरने वाले चंद्रलोक को पाकर पुनर्जन्‍म पाते हैं।

टिप्‍पणी- ऊपर के दो श्‍लोक मैं पूरी तौर से नहीं समझता। उनके शब्‍दार्थ का गीता की शिक्षा के साथ मेल नहीं बैठता। उस शिक्षा के अनुसार तो जो भक्तिमान है, जो सेवामार्ग को सेता है, जिसे ज्ञान हो चुका है, वह चाहे जभी मरे, उसे मोक्ष ही है। उससे इन श्‍लोकों का शब्‍दार्थ विरोधी है। उसका भावार्थ यह अवश्‍य निकल सकता है कि जो यज्ञ करता है अर्थात परोपकार में ही जो जीवन बिताता है, जिसे ज्ञान हो चुका है, जो ब्रह्मविद् अर्थात ज्ञानी है, मृत्‍यु के समय भी यदि उसकी ऐसी स्थिति हो तो वह मोक्ष पाता है। इससे विपरीत जो यज्ञ नहीं करता जिसे ज्ञान नहीं है जो भक्ति नहीं जानता वह चंद्रलोक अर्थात क्षणिक लोक को पाकर फिर संचार-चक्र में लौटता है। चंद्र के निजी ज्‍योति नहीं है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः