गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
आठवां अध्याय
अक्षरब्रह्म्रयोग
शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगत: शाश्वते मते। जगत में ज्ञान और अज्ञान के ये दो परंपरा से चलते आये मार्ग जाने गए हैं। एक अर्थात ज्ञानमार्ग से मनुष्य मोक्ष पाता है और दूसरे अर्थात अज्ञान मार्ग से उसे पुनर्जन्म प्राप्त होता है। नैते सृती पार्थ जानन्योगी मुह्यति कश्चन। हे पार्थ! इन दोनों मार्गों का जानने वाला कोई भी योगी मोह में नहीं पड़ता। इसलिए हे अर्जुन! तू सर्वदा योगयुक्त रहना। टिप्पणी- दोनों मार्गों का जानने वाला और समभाव रखने वाला अंधकार का, अज्ञान का मार्ग नहीं पकड़ता, इसी का नाम है 'मोह में न पड़ना।' वेदेषु यज्ञेषु तप:सु चैव यह वस्तु जान लेने के बाद वेद में, यज्ञ में, तप में, और दान में जो पुण्यफल बतलाया है, उस सबको पार करके योगी उत्तम आदि स्थान पाता है। टिप्पणी- अर्थात जिसने ज्ञान, भक्ति और सेवा-क्रम से समभाव प्राप्त किया है, उसे न केवल सब पुण्यों का फल ही मिल पाता है, बल्कि उसे 'परम मोक्ष पद' मिलता है। ॐ तत्सत् इति श्रीमद्भगवद्गीता रूपी उपनिषद् अर्थात ब्रह्मविद्यान्तर्गत योगशास्त्र के श्रीकृष्णार्जुनसंवाद का ʻअक्षरब्रह्मयोगʼ नामक आठवां अध्याय। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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