महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
सत्यवती के बेटे
राजा विचित्रवीर्य की आयु अभी कम थी और वे नासमझ भी थे। इसलिए भीष्म ही अपने छोटे भाई के राज-पाट की निगरानी करते थे। उन्होंने ही अपने छोटे भाई के लिए काशी के राजा की तीन लड़कियों को स्वयंवर में जीत लिया। काशिराज की बड़ी लड़की अम्बा ने कहा - "हे राजकुमार भीष्म, मैं शाल्व से विवाह करना चाहती हूं, इसलिए आप मुझे अपने छोटे भाई की बहू न बनायें।" भीष्म ने उसको तो विदा कर दिया और उसकी दोनों बहनों, अम्बिका और अम्बालिका से अपने छोटे भाई राजा विचित्रवीर्य का ब्याह बड़ी धूम-धाम से किया। रानी सत्यवती अपनी दोनों बहुओं के साथ सुख से दिन बिनाने लगी। राज-काज ऐसा अच्छा चल रहा था कि प्रजा हरदम जय-जयकार करती थी। परन्तु रानी सत्यवती का यह सुख बहुत दिनों तक न रह सका। विधाता की करनी कुछ ऐसी हुई कि राजा विचित्रवीर्य को क्षयरोग हो गया। बड़े-बड़े इलाज हुए, पर होनी होकर ही रही। रानी सत्यवती का दूसरा बेटा भी उन्हें बुढ़ापे में रोती-तड़पती छोड़कर चल बसा। परन्तु भीष्म बड़े ही समझदार और उदार हृदय के व्यक्ति थे। उन्होंने अपनी सौतेली माता को ढाढ़स बंधाया। रानी सत्यवती के पाराशर ऋषि से उत्पन्न बेटे श्रीकृष्णद्वैपायन अब बड़े तपस्वी हो गये थे। उन्होंने प्राचीन वेद की पवित्र ऋचाओं को चार खण्डों में संकलित किया था। इसलिए विद्वानों ने उन्हें महर्षि वेदव्यास की उपाधि दी थी। दुख के अवसर पर रानी सत्यवती ने अपने यशस्वी और महान तपस्वी बेटे व्यास जी को बुलवाया और कहा - "हे पुत्र, तुम्हारे रहते तुम्हारे छोटे भाई का वंश समाप्त नहीं होगा। मेरी बहुओं को कृपा करने संतानवती होने का वरदान दो।" व्यास जी ने अपनी माता की आज्ञा मानकर राजा विचित्रवीर्य के वंश को दो पुत्र प्रदान किये। महल की एक दासी भी रानियों के साथ व्यास जी की सेवा में गई थी। उसके भी एक बेटा हुआ।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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