महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
युद्ध की ओर
दुर्योधन ने श्रीकृष्ण के स्वागत प्रबन्ध को अपनी आज्ञा से रद्द कर दिया। राजा धृतराष्ट्र की एक न चली। यह सुनकर भीष्म पितामह ने अपने भतीजे धृतराष्ट्र और पोते दुर्योधन से मिलने की इच्छा व्यक्त की। उन्होंने धृतराष्ट्र के सामने दुर्योधन से कहा- "बेटा, श्रीकृष्ण लोक पूज्य हैं। तुम्हारे पिता ने उनके स्वागत-सत्कार के लिए जो आदेश दिया था, वह सही था। तुमने उसे रद्द क्यों कर दिया?" दुर्योधन बोला- "मैं यह नहीं चाहता कि श्रीकृष्ण या कोई और यह समझे कि मैंने डर के मारे उनका ऐसा भव्य स्वागत किया। वैसे भी मैं पाण्डवों के कट्टर पक्षधर का शानदार स्वागत करने के पक्ष में नहीं हूँ। उनके समझौते के प्रस्ताव में ढोंग के सिवा और कुछ न होगा। उनकी पूजा करना बेकार है।" उद्धत दुर्योधन की यह बात सुनकर फिर भीष्म ने उससे तो कुछ नहीं कहा पर धृतराष्ट्र से बोले- "वत्स, श्रीकृष्ण किसी के आदर-सत्कार के भूखे नहीं हैं। वे इतने ओछे दिल के भी नहीं हैं कि अपना आदर-सत्कार किये जाने पर बुरा मान जायें। इसलिए उनका स्वागत करना या न करना उनकी दृष्टि से बेकार है पर हमारी दृष्टि से इसका नतीजा अच्छा न निकलेगा। मैं तुमसे फिर कहता हूँ कि कृष्ण का अनादर न होने देना। उनको बीच में डालकर यदि अपने और पाण्डव बेटों में उचित समझौता करा लोगे तो केवल तुम्हारा ही नहीं बल्कि संसार का एक महान संकट टल जायेगा।" दुर्योधन चिढ़कर बोला- "पितामह, चाहे सूर्य पूर्व के बजाय पश्चिम से उदय होने लगे, चाहे पृथ्वी इधर से उधर उलट जाय, परन्तु मैं पाण्डवों के साथ मिलकर इस धरती का राज-पाट कदापि नहीं भोगूंगा। मैं अब इस सन्धि के प्रस्तावों से ऊब चुका हूँ। मैं आपको यह भी बतलाए देता हूँ कि कृष्ण ने यदि हमारे ऐड़ी बेड़ी बात निकाली तो मैं उन्हें कैद कर लूंगा।" धृतराष्ट्र भय और क्रोध के मारे कांप उठे। उन्होंने अपने बेटे को डांटा और कहा- "खबरदार ऐसा कोई काम न करना। तुम्हें लज्जा नहीं आती कि श्रीकृष्ण ने तुम्हारे मांग करते ही अपनी सारी नारायणी सेना तुम्हें सौंप दी। ऐसे व्यक्ति को बन्दी बनाने का मतलब भी समझते हो?" मैं तुम्हें चेताये देता हूँ इस तरह की कोई गड़बड़ मत करना। भीष्म बोले- “धृतराष्ट्र, तुम्हारा यह लड़का बड़ा ही मूर्ख है। यदि तुम इसके ऊपर कड़ा अनुशासन नहीं लगाओगे तो तुम्हें बहुत दुखद परिणाम भुगतना पड़ेगा।" |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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