महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
युद्ध की ओर
संजय मंत्री निराश होकर लौट गये और धृतराष्ट्र से सारी बातें कहीं। संजय ने यह भी बतलाया कि पाण्डवों के यहाँ युद्ध की जबरदस्त तैयारियां हो रही है। जितने राजा महाराजा आपके बेटों का साथ देने आये हैं उतने ही पाण्डवों के साथ भी हैं बल्कि अर्जुन और भीम के पराक्रम पर विश्वास करके उनके यहाँ और भी अधिक सैनिक सहायता पहुँचने वाली है। संजय की बातें सुनकर धृतराष्ट्र का मन भय और लोभ से जड़ हो गया। भय यह था कि लड़ाई में पाण्डव उनके बेटों को कहीं हरा न दें, और लोभ यह था कि हमारे बेटों का पाण्डव भतीजों के राज-पाट पर अधिकार बना रहे। मन का लालच ज्ञानी मनुष्य को भी अज्ञानी बना देता है। मोह के मारे वह सही बात सोच नहीं पाता। संजय की बातें सुनकर तथा भीम और अर्जुन के पराक्रम का ध्यान करके जैसे-जैसे उनकी घबराहट और भय में बढोत्तरी होती चलती थी वैसे-वैसे ही उनका मन अपने पाण्डव-भतीजों के लिए घृणा और क्रोध से कसता भी जाता था। वे यह चाहते थे कि लड़ाई न हो, साथ ही साथ पाण्डवों को राज-पाट भी न लौटाना पड़े, परन्तु किसी के मन की ऐसी उल्टी-सीधी बातें भला कभी फल सकती हैं। धृतराष्ट्र ऊपरी तौर पर तो अन्धे थे ही, पर गलत किस्म के लालच और मोह में पड़कर उनकी बुद्धि भी अन्धी हो गयी थी। सारा उत्तर भारत एक विशाल युद्ध क्षेत्र बना हुआ था। तनातनी बराबर बढ़ती ही जा रही थी। तमिलनाडु के पाण्ड्य राजाओं से लेकर बल्ख और बगदाद तक के आर्य तथा शक राजा इस युद्ध में भाग ले रहे थे। चीन और किरात देशों की सेनायें भी कौरवों की ओर से लड़ने के लिए आयी थीं। एक तरह से देखा जाय तो कौरव पाण्डवों के इस युद्ध में केवल भारत ही नहीं बल्कि आधा एशिया महाद्वीप भी इन दोनों भाइयों के साथ साथ नथा हुआ था। राजनीति में दोस्ती केवल दोस्ती के लिए ही नहीं हुआ करती। इसमें देशों के आपसी स्वार्थ भी काम करते हैं। भारतवर्ष के व्यापार सम्बन्ध इन सभी देशों से घनिष्ट थे। दूसरी बात यह थी कि जिन सूर्य और चन्द्रवंशी आर्य राजाओं की सत्ता हमारे देश पर थी उन्हीं कुलों की दूसरी शाखायें इन देशों पर भी राज्य करती थीं। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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