भागवत स्तुति संग्रह पृ. 48

भागवत स्तुति संग्रह

पहला अध्याय

बाललीला
चतुर्थ प्रकरण
कुमारावस्थालीला

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ब्रह्माकृत स्तुति

भगवान के घुसते ही अघासुर ने अपना मुँह बंद कर लिया। इधर उसके गले में पहुँचकर भगवान ने अपना शरीर बढ़ाना आरंभ किया। इससे उसके गले में डाट सी लग गयी और उसका दम घुटने लगा। उसके नेत्र बाहर निकल पड़े और वह छटपटाने लगा। इससे उसके प्राण ब्रह्मरन्ध्र को फोड़कर बाहर निकल आये। प्राण निकलते ही भगवान पूर्ववत बाल रूप से सब ग्वाल और बछड़ों के सहित बाहर निकल आये।

तदन्तर वे विचरते हुए यमुना के तट पर पहुँचे और क्षुधानिवृत्ति के लिए भोजन की तैयारी करने लगे। ग्वालबालों ने अपनी-अपनी भोजन की पोटलियाँ खोलीं और आपस में एक दूसरे के पदार्थ बाँट लिए। भगवान ने अपने बायें हाथ के हथेली में ग्रास रखा, अँगुलियों के पोरुओं में चटनी इत्यादि पदार्थ रखे और सब बालकों के मध्य में खड़े होकर अपने चारों ओर बैठे हुए साथियों को हँसाते हुए भोजन करने लगे। इसी समय बछड़े अपने स्थान पर दिखायी न दिये क्योंकि वे हरी-हरी घास चरते-चरते दूर निकल गये। भगवान ने बालकों को भयभीत देखकर कहा ‘तुम भोजन न छोड़ो, मैं बछड़ों को ले आता हूँ।’ ऐसा कहकर वे हाथ में भात लिए आगे बढ़ गये।

इस समय ब्रह्मा जी ने, जो अघासुर का आश्चर्यजनक मोक्ष देखा तो उनकी उत्कण्ठा भगवान् की आनन्ददायिनी महिमा देखने की और भी अधिक हुई। इसी से उन्होंने बछड़े छिपा दिये। भगवान ग्वालबालों को छोड़कर आगे बढ़े तो ब्रह्मा जी ने उन ग्वालबालों को भी एक पर्वत की कन्दरा में छिपाकर सुला दिया। भगवान तो ब्रह्मा जी की सारी करतूत जान ही गये। तब जगत्प्रतिपालक श्रीकृष्णचन्द्र ने मन में विचार किया कि यदि मैं इस समय ग्वाल-बाल और बछड़ों को घर नही ले जाऊँगा तो इनकी माताओं को अत्यंत दुख होगा। और यदि ब्रह्मा जी के चुराये हुए बछड़ों और गोपालों को लौटाता हूँ तो ब्रह्मा को मोह नहीं होगा। अतः ऐसा न करके भगवान ने अपने को ही उन नाना रूप के गोवत्स और गोपालों के रूप में परिणत कर दिया। यहाँ कोई शंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि भगवान ही सारे जगत के निमित्त और उपादान कारण है, भगवान के बिना किसी वस्तु का अस्तित्व नहीं है। इसके सिवा यह बात भी है कि भगवान माया के स्वामी हैं, अतः वे सभी प्रकार के चमत्कार कर सकते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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