विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
पहला अध्याय
बाललीला
चतुर्थ प्रकरण
कुमारावस्थालीला
ब्रह्माकृत स्तुति
भगवान के घुसते ही अघासुर ने अपना मुँह बंद कर लिया। इधर उसके गले में पहुँचकर भगवान ने अपना शरीर बढ़ाना आरंभ किया। इससे उसके गले में डाट सी लग गयी और उसका दम घुटने लगा। उसके नेत्र बाहर निकल पड़े और वह छटपटाने लगा। इससे उसके प्राण ब्रह्मरन्ध्र को फोड़कर बाहर निकल आये। प्राण निकलते ही भगवान पूर्ववत बाल रूप से सब ग्वाल और बछड़ों के सहित बाहर निकल आये। तदन्तर वे विचरते हुए यमुना के तट पर पहुँचे और क्षुधानिवृत्ति के लिए भोजन की तैयारी करने लगे। ग्वालबालों ने अपनी-अपनी भोजन की पोटलियाँ खोलीं और आपस में एक दूसरे के पदार्थ बाँट लिए। भगवान ने अपने बायें हाथ के हथेली में ग्रास रखा, अँगुलियों के पोरुओं में चटनी इत्यादि पदार्थ रखे और सब बालकों के मध्य में खड़े होकर अपने चारों ओर बैठे हुए साथियों को हँसाते हुए भोजन करने लगे। इसी समय बछड़े अपने स्थान पर दिखायी न दिये क्योंकि वे हरी-हरी घास चरते-चरते दूर निकल गये। भगवान ने बालकों को भयभीत देखकर कहा ‘तुम भोजन न छोड़ो, मैं बछड़ों को ले आता हूँ।’ ऐसा कहकर वे हाथ में भात लिए आगे बढ़ गये। इस समय ब्रह्मा जी ने, जो अघासुर का आश्चर्यजनक मोक्ष देखा तो उनकी उत्कण्ठा भगवान् की आनन्ददायिनी महिमा देखने की और भी अधिक हुई। इसी से उन्होंने बछड़े छिपा दिये। भगवान ग्वालबालों को छोड़कर आगे बढ़े तो ब्रह्मा जी ने उन ग्वालबालों को भी एक पर्वत की कन्दरा में छिपाकर सुला दिया। भगवान तो ब्रह्मा जी की सारी करतूत जान ही गये। तब जगत्प्रतिपालक श्रीकृष्णचन्द्र ने मन में विचार किया कि यदि मैं इस समय ग्वाल-बाल और बछड़ों को घर नही ले जाऊँगा तो इनकी माताओं को अत्यंत दुख होगा। और यदि ब्रह्मा जी के चुराये हुए बछड़ों और गोपालों को लौटाता हूँ तो ब्रह्मा को मोह नहीं होगा। अतः ऐसा न करके भगवान ने अपने को ही उन नाना रूप के गोवत्स और गोपालों के रूप में परिणत कर दिया। यहाँ कोई शंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि भगवान ही सारे जगत के निमित्त और उपादान कारण है, भगवान के बिना किसी वस्तु का अस्तित्व नहीं है। इसके सिवा यह बात भी है कि भगवान माया के स्वामी हैं, अतः वे सभी प्रकार के चमत्कार कर सकते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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