भागवत स्तुति संग्रह पृ. 131

भागवत स्तुति संग्रह

दूसरा अध्याय

माधुर्यलीला
तृतीय प्रकरण
रास का आह्वान्[1]

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नागपत्नियों द्वारा की हुई स्तुति


कुर्वन्ति हि त्वयि रतिं कुशलाः स्व आत्मन्
नित्यप्रिये पतिसुतादिभिरार्तिदैः किम्।
तन्नः प्रसीद परमेश्वर मा स्म छिन्द्या
आशां भृतां त्वयि चिरादरविन्दनेत्र ।।[2]
 

अब माधुर्य भक्ति के अंतर्गत रासलीला का प्रकरण आरंभ करते हैं। श्रीमद्भागवत के द्रष्टा पूज्यपाद श्रीधरस्वामी जी का मत है कि इस रासपंचाध्यायी से भगवान का काम-विजय सूचित होता है। ब्रह्मा एवं इन्द्रादि काम से हार गये[3]थे किन्तु भगवान ने कोटिशः गोपियों के यूथ के साथ रहकर भी काम को जीत लिया! ये गोपियाँ सुंदरता, तारुण्य और हाव-भाव में उर्वशी से भी बढ़-चढ़कर थीं।

पूज्यपाद श्रीधरस्वामी जी ने चार स्थलों से चार उक्तियाँ उद्धृत करके यह सिद्ध कर दिया कि भगवान स्वतंत्र हैं और जो रासक्रीड़ा हुई वह सब माया का कार्य था। अथवा भगवान ने माया का आश्रय लेकर क्रीड़ा की और आप स्वतंत्र रहे। उपर्युक्त चार उक्तियों में प्रथम तो ‘योगमायामुपाश्रितः’[4] है। इन शब्दों से प्रतीत होता है कि भगवान् ने जो एक रात्रि में कई रात्रियाँ दिखायीं, थोड़े से संकीर्ण स्थान में शतकोटि गोपियों के यूथ के साथ नृत्य किया और अकेले होकर इतनी गोपियों के साथ एक काल में क्रीड़ा की यह सब माया का आश्रय लिये बिना नहीं हो सकता था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भा. स्क. 10 अ. 28, 29।
  2. अर्थ इसी प्रकरण के श्लोक 33 की टीका में देखिये।
  3. अहल्यायां जारः सुरपतिरभूदात्मतनयां
    प्रजानाथोऽयासीदभजत गुरोरिन्दुरबलाम्।
    इति प्रायः को वा न पदमपथेऽकार्यत मया-
    श्रमो मद्वागणानां क इव भुवनोन्माथविधिषु।।इति।।
  4. भा. 10।29।1।
    इस श्लोक में ‘ता रात्रीः’ शब्द बहुवचनान्त है, इससे सूचित होता है कि रासक्रीड़ा में केवल एक रात्रि में ही अनेक रात्रियाँ प्रतीत हुई थीं।

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प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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