विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
चौथा अध्याय
द्वारकालीला
नवम् प्रकरण
देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार
वसुदेवकृत स्तुति[1]
हे कृष्ण! हे कृष्ण! हे महायगिन! हे संकर्षण! हे सनातन! मैं जानता हूँ कि आप दोनों इस जगत के साक्षात कारण जो प्रकृति पुरुष हैं उनके भी कारण रूप परमेश्वर हैं।।3।। (शंका- यह जगत अनेक कारणों से उत्पन्न हुआ है, ऐसी परिस्थिति में यह जगत् प्रकृति और पुरुष से उत्पन्न हुआ है और प्रकृति तथा पुरुष के भी कारण होने के कारण आप दोनों परमेश्वर हैं यह कैसे कहते हो? समाधान-) यह जगत जिस अधिष्ठान में स्थित है, जिस कर्ता, करम और अपादान से जिसके संबंध से जिसके लिए जैसा और जब यह जगत उत्पन्न है- अर्थात जो इसके प्रयोज्यकर्ता या कार्यकर्ता हैं वे सब प्रकृति और पुरुष के ईश्वर आप ही हैं।।4।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भा. 10।85।
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