भागवत स्तुति संग्रह पृ. 362

भागवत स्तुति संग्रह

चौथा अध्याय

द्वारकालीला
सप्तम प्रकरण
जरासन्ध और शिशुपालादिका वध[1]

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कारागृहमुक्त राजा तथा युधिष्ठिरकृत स्तुति[2]

 
त्वत्पादुके अविरतं परि ये चरन्ति
ध्यायन्त्य भद्रनशने शुचयो गृणन्ति।
विन्दन्ति ते कमलनाथ भवापवर्ग-
माशासते यदि त आशिष ईश नान्ये।।4।।

तद्देवदेव भवतश्चरणारविन्द-
सेवानुभावमिव पश्यतु लोक एषः।
ये त्वां भजन्ति न भजन्त्युत वोभयेषां
निष्ठां प्रदर्शय विभो कुरुसृञ्जयानाम्।।5।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भा. स्क. 10 अ. 72-74
  2. भा. स्क. 10 अ. 72 के अंतर्गत युधिष्ठिर जी की स्तुति का अर्थ-
    हे कमलनाभ! हे ईश्वर! जो पुरुष आपकी पापनाशक चरणपादुकाओं का सेवन, ध्यान तथा माहात्म्यवर्णन करते हैं, वे शुद्धचित होकर मोक्षपद को प्राप्त कर लेते हैं और यदि वे विषयों की आशा करते हैं तो उनको भी पाते हैं, जो कि अन्य चक्रवर्तियों को भी प्राप्त नहीं है।।4।।
    हे देवदेव! हे विभो! इस लोक के प्राणी आपके चरमों की सेवा के प्रभाव को देख लें। कौरवों और सृञ्जयों में जो आपका भजन करते हैं और जो आपका भजन नहीं करते उन दोनों की स्थिति को आप दिखा दीजिए।।5।।
    (शंका- भगवान् राग-द्वेषरहित हैं, उनमें यह भेदभाव कैसे हो सकता है? समाधान-) यद्यपि आप निरुपाधि, सर्वात्मा समदृष्टि, आनन्दरूप ब्रह्म हैं, आपकी ‘यह मेरा है, यह पराया है’ इस प्रकार भेदबुद्धि नही है; तथापि सर्वदा समानदृष्टि होने पर जो पुरुष कल्पवृक्ष की सेवा करता है उसी को फल मिलता है अन्य को नहीं मिलता, वैसे ही जो आपकी भलीभाँति सेवा करता है उसके ही ऊपर आपकी सेवा के अनुरूप कृपा होती है इसमें कोई वैषम्य-नैर्घृण्य आदि दोष नहीं आता।।6।।

संबंधित लेख

भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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