विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
चौथा अध्याय
द्वारकालीला
सप्तम प्रकरण
जरासन्ध और शिशुपालादिका वध[1]
कारागृहमुक्त राजा तथा युधिष्ठिरकृत स्तुति[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भा. स्क. 10 अ. 72-74
- ↑ भा. स्क. 10 अ. 72 के अंतर्गत युधिष्ठिर जी की स्तुति का अर्थ-
हे कमलनाभ! हे ईश्वर! जो पुरुष आपकी पापनाशक चरणपादुकाओं का सेवन, ध्यान तथा माहात्म्यवर्णन करते हैं, वे शुद्धचित होकर मोक्षपद को प्राप्त कर लेते हैं और यदि वे विषयों की आशा करते हैं तो उनको भी पाते हैं, जो कि अन्य चक्रवर्तियों को भी प्राप्त नहीं है।।4।।
हे देवदेव! हे विभो! इस लोक के प्राणी आपके चरमों की सेवा के प्रभाव को देख लें। कौरवों और सृञ्जयों में जो आपका भजन करते हैं और जो आपका भजन नहीं करते उन दोनों की स्थिति को आप दिखा दीजिए।।5।।
(शंका- भगवान् राग-द्वेषरहित हैं, उनमें यह भेदभाव कैसे हो सकता है? समाधान-) यद्यपि आप निरुपाधि, सर्वात्मा समदृष्टि, आनन्दरूप ब्रह्म हैं, आपकी ‘यह मेरा है, यह पराया है’ इस प्रकार भेदबुद्धि नही है; तथापि सर्वदा समानदृष्टि होने पर जो पुरुष कल्पवृक्ष की सेवा करता है उसी को फल मिलता है अन्य को नहीं मिलता, वैसे ही जो आपकी भलीभाँति सेवा करता है उसके ही ऊपर आपकी सेवा के अनुरूप कृपा होती है इसमें कोई वैषम्य-नैर्घृण्य आदि दोष नहीं आता।।6।।
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