भागवत स्तुति संग्रह पृ. 47

भागवत स्तुति संग्रह

पहला अध्याय

बाललीला
चतुर्थ प्रकरण
कुमारावस्थालीला

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ब्रह्माकृत स्तुति

एक समय वत्सासुर नाम का राक्षस बछड़े का रूप धारण कर अकेले बछड़ों में आ मिला। भगवान धीरे-धीरे उसके समीप आये और उसके पीछे के पैरों को पकड़कर घुमाते हुए उसे एक पेड़ पर पटक आये, वहाँ गिरते ही उस दैत्य का प्राणान्त हो गया। मरते समय मायिक रूप न रहने के कारण उस दैत्य ने अपना अति विकराल और विशाल देह प्रकट किया।

दूसरे समय गोपों ने बगुले के रूप में एक बड़ा भारी प्राणी देखा, उसे देखकर वे भयभीत हो गये। यह पूतना का भाई बक नाम का दैत्य था। जब अन्य ग्वालबालों के साथ भगवान उसके पास गये तो उसने झपटकर उन्हें निगल लिया किन्तु भगवान का तेज ऐसा असह्य था कि उसे अपने तालु के मूल में अग्नि का दाह सा अनुभव होने लगा। तब उसने तत्काल वमन करके श्रीकृष्ण जी को बाहर निकाल दिया और बड़े क्रोध से चोंच खोलकर उनके शरीर पर झपटा। तब भगवान ने उसकी चोंच के दोनों भागों को अपने दोनों हाथों से पकड़कर सब बालकों के देखते हुए पतेल के समान सहज में चीर डाला।

तीसरी बार भगवान अपने साथियों और बछड़ों के साथ वन में गये। वहाँ पूतना एवं बकासुर का भाई अघासुर एक बहुत बड़े अजगर के रूप में इस प्रतीक्षा में बैठा था कि कब श्रीकृष्ण आवें और मैं उनका वध करूँ। उसका आकार इतना बड़ा था कि वह एक पर्वतश्रेणी सा जान पड़ता था। उसे देखकर ग्वाल बाल आपस में कहने लगे ‘देखो यह कैसा विचित्र अजगराकर पर्वत है। ऐसा जान पड़ता है मानो इसका ऊपर का होंठ मेघ से मिला हुआ है और नीचे का नदी पर रखा हुआ है। इसकी ये दोनों गुफाएँ जबड़े सी जान पड़ती हैं और ये पर्वत शिखर मानो दाढ़े हैं। यह चौड़ा सा मार्ग जिह्वा सा जान पड़ता है।’ इस प्रकार कहते हुए उन बालकों ने अपने बछड़ों के साथ हँसते हँसते उसके मुख में प्रवेश किया। तब समस्त ग्वाल-बालों को अघासुर के मुख में देख उसके वध और अपने भक्तो के त्राण के लिए स्वयं भी भगवान उसके मुख में प्रविष्ट हो गये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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