विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
पहला अध्याय
बाललीला
चतुर्थ प्रकरण
कुमारावस्थालीला
ब्रह्माकृत स्तुति
एक समय वत्सासुर नाम का राक्षस बछड़े का रूप धारण कर अकेले बछड़ों में आ मिला। भगवान धीरे-धीरे उसके समीप आये और उसके पीछे के पैरों को पकड़कर घुमाते हुए उसे एक पेड़ पर पटक आये, वहाँ गिरते ही उस दैत्य का प्राणान्त हो गया। मरते समय मायिक रूप न रहने के कारण उस दैत्य ने अपना अति विकराल और विशाल देह प्रकट किया। दूसरे समय गोपों ने बगुले के रूप में एक बड़ा भारी प्राणी देखा, उसे देखकर वे भयभीत हो गये। यह पूतना का भाई बक नाम का दैत्य था। जब अन्य ग्वालबालों के साथ भगवान उसके पास गये तो उसने झपटकर उन्हें निगल लिया किन्तु भगवान का तेज ऐसा असह्य था कि उसे अपने तालु के मूल में अग्नि का दाह सा अनुभव होने लगा। तब उसने तत्काल वमन करके श्रीकृष्ण जी को बाहर निकाल दिया और बड़े क्रोध से चोंच खोलकर उनके शरीर पर झपटा। तब भगवान ने उसकी चोंच के दोनों भागों को अपने दोनों हाथों से पकड़कर सब बालकों के देखते हुए पतेल के समान सहज में चीर डाला। तीसरी बार भगवान अपने साथियों और बछड़ों के साथ वन में गये। वहाँ पूतना एवं बकासुर का भाई अघासुर एक बहुत बड़े अजगर के रूप में इस प्रतीक्षा में बैठा था कि कब श्रीकृष्ण आवें और मैं उनका वध करूँ। उसका आकार इतना बड़ा था कि वह एक पर्वतश्रेणी सा जान पड़ता था। उसे देखकर ग्वाल बाल आपस में कहने लगे ‘देखो यह कैसा विचित्र अजगराकर पर्वत है। ऐसा जान पड़ता है मानो इसका ऊपर का होंठ मेघ से मिला हुआ है और नीचे का नदी पर रखा हुआ है। इसकी ये दोनों गुफाएँ जबड़े सी जान पड़ती हैं और ये पर्वत शिखर मानो दाढ़े हैं। यह चौड़ा सा मार्ग जिह्वा सा जान पड़ता है।’ इस प्रकार कहते हुए उन बालकों ने अपने बछड़ों के साथ हँसते हँसते उसके मुख में प्रवेश किया। तब समस्त ग्वाल-बालों को अघासुर के मुख में देख उसके वध और अपने भक्तो के त्राण के लिए स्वयं भी भगवान उसके मुख में प्रविष्ट हो गये।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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