भागवत स्तुति संग्रह पृ. 374

भागवत स्तुति संग्रह

चौथा अध्याय

द्वारकालीला
अष्टम प्रकरण
सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ[1]

Prev.png
[2]सुदामा तथा ऋषियों द्वारा की गयी स्तुति

 
तस्यैव मे सौहृदसख्यमैत्री दास्यं पुनर्जन्मनि जन्मनि स्यात्।
महानुभावेन गुणालयेन विषज्जतस्तत्पुरुषप्रसंगः।।36।।

भक्ताय चित्रा भगवान्हि संपदो राज्यं विभूतीर्न समर्थयत्यजः।
अदीर्घबोधाय विचक्षणः स्वयं पश्यन्निपातं धनिनां मदोद्भवम्।।37।।

प्रायः सब खलों का वध हो चुका था केवल शाल्व, दन्तवक्त्र और विदूरथ बचे थे। इनकी भी भगवान ने अंत कर दिया और आनन्द से द्वारका में रहने लगे।

एक समय की बात है कि भगवान का सहपाठी और बालकाल का मित्र सुदामा नाम का ब्राह्मण स्त्री के बहुत कहने-सुनने पर भगवान से मिलने के लिए आया। यह ब्राह्मण अतिदीन और दरिद्र था। मलिन वस्त्र ओढ़े अपनी काँख में एक फटे कपड़े से बँधी कुछ चावल (चूड़ा) की पोटली छिपाये भगवान के समीप उपस्थित हुआ।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भा. स्क. 10 अ. 76 से 84 तक।
  2. भा. स्क. 10 अ. 81 के अंतर्गत सुदामा जी कृत स्तुति का अर्थ-
    [भगवान् श्रीकृष्ण का अपने भक्तों में अतिशय प्रेम देखकर उनकी भक्ति की प्रार्थना करते हैं-] मुझे अनेक जन्म जन्मान्तरों में उन्हीं भगवान् कृष्ण का प्रेम, हितवार्ता, उपकारकता और सेवकत्व प्राप्त हो। उन्हीं महानुभाव कृष्ण के साथ विशेषरूप से आसक्ति को प्राप्त हुआ मैं उनके भक्तों की अमूल्य संगति को प्राप्त होऊँ..36।।
    (शंका- भक्ति का फल संपत्ति जब मिल चुकी तो फिर भक्ति की प्रार्थना क्यों करते हो? समाधान-) धनी पुरुषों की मदजनित अधोगति को देखते हुए स्वयं विचारवान् भगवान् अपने भक्तों को धन-संपत्ति, ऐश्वर्य और पुत्र कलत्र आदि नहीं देते। मुझ अविवेकी में भक्ति न देखकर ही भगवान् ने यह सब धन दौलत मुझे दिया है। अतः मैं केवल भक्ति ही चाहता हूँ।।37।।

संबंधित लेख

भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः