विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
पहला अध्याय
बाललीला
चतुर्थ प्रकरण
कुमारावस्थालीला[1]
ब्रह्माकृत स्तुति
पूतनावध आदि अद्भुत चरित्रों को देखकर गोकुलवासियों को संदेह होने लगा कि क्या ये कार्य बालकरूप श्रीकृष्ण के ही हैं। इन गोप-गोपियों को तो माधुर्यभाव ही इष्ट था। ये तो भगवान को अपना पुत्र, सखा प्रियरूप से ही देखना चाहते थे। इस कारण भगवान भी अत्यंत बालभाव का ही अनुकरण करते रहते थे। जब कोई गोपी कहती कि तू बड़ा अच्छा नृत्य करता है, तब भगवान बालक के समान नृत्य करने लगते। ऐसे ही जब गाने की प्रशंसा की जाती तो ऊँचे स्वर से गाने लगते थे। जब कोई गोपी कहती ‘भय्या! वह पीढ़ा, पसेरी और पाँवड़ी तो उठा ला’ तब उन भारी वस्तुओं को लाने में असमर्थ होकर भी लाने का प्रयत्न करते। कभी अपने साथी बालकों के साथ मल्लयुद्ध करने को उद्यत हो जाते। इस प्रकार वे तरह-तरह की बालक्रीड़ाएँ करके गोकुलवासियों के चित्त में हर्ष उत्पन्न करते थे। किन्तु ये लोग गोकुल में नित्य नये उत्पात होते देखकर नाना प्रकार की शंकाएँ करने गे। और सब गोपों ने मिलकर अन्यत्र जाने का निश्चय कर लिया। फिर वे सब लोग वृन्दावन में आकर बस गये। यह वन बड़ा सुहावना और नये-नये उद्यानों से युक्त था। इसमें गोपाल, गोपी और गौओं के सेवन करने योग्य पवित्र पर्वत, तृण और लताओं की बहुलता थी। इस समय भगवान् की अवस्था पाँच वर्ष की थी। वे गोप बालकों के साथ गाय चराने को दूर-दूर स्थानों में जाने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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