विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
चौथा अध्याय
द्वारकालीला
प्रथम प्रकरण
रुक्मिणी के साथ विवाह
रुक्मिणी का पत्र[1]
यस्याङ्घ्रिपंकजरजः स्नपनं महान्तो मुचुकुन्द जी तप करने के निमित्त बदरिकाश्रम चले गये। भगवान जरासन्ध से न लड़े और रण छोड़कर द्वारका को भाग आये। द्वारकावासियों ने भगवान का बड़ा स्वागत किया और ब्राह्मणों ने जयघोष किया। यह एक अद्भुत बात है कि भगवान् का युद्धक्षेत्र में जरासंध के सामने से भागना भी उनकी कीर्ति का स्मारक हुआ। इसी कारण दक्षिण प्रान्त में उनका नाम ‘रणछोड़’ पड़ा। वहाँ के लोग आज तक इसी नाम से भगवान का अर्चन, पूजन करते हैं। इधर द्वारका में एक ब्राह्मण भगवान से मिलने के लिए एक पत्र लेकर आया। यह पत्र विदर्भ देश के राजा भीष्मक की कन्या रुक्मिणी का था, इस कन्या ने भगवान के चरित्र और कीर्ति बहुत से लोगों ने सुनी थी। इस कारण इसने निश्चय कर लिया था कि मैं भगवान के साथ ही विवाह करूँगी। भगवान के कानों में भी उसके शील, गुण और सुंदरता की ख्याति पड़ चुकी थी और उन्होंने भी उसे अपने योग्य समझ रखा था। राजा भीष्मक भी यही चाहते थे कि इन दोनों का विवाह हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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