विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
चौथा अध्याय
द्वारकालीला
चतुर्थ प्रकरण
बाणासुर का अभिमान भंजन[1]
ज्वर तथा रुद्रकृत स्तुतियाँ
बाणासुर के अभिमान का नाश एक निराले ढंग से हुआ। वह राजा बलि का पुत्र था और शिव जी का परम भक्त था। उसके सहस्र भुजाएँ थीं, इस कारण वह बड़ा बली था। एक समय वह शिव जी के पास गया और कहने लगा कि मेरे हाथ खुजलाते हैं किन्तु मेरे साथ कोई युद्ध करने को उद्यत नहीं होता। शंकर जी ने कहा- ‘रे मूढ़! जब तेरी ध्वजा अपने आप टूट पड़ेगी तब मेरा गर्व-नाश करने वाले मेरे समान योद्धा के साथ तेरा युद्ध होगा।’ यह सुनकर कुबुद्धि बाणासुर हर्षयुक्त होकर उस समय की प्रतीक्षा करने लगा। इसकी उषा नामक की एक कन्या थी। उषा ने स्वप्न में एक अति सुंदर पुरुष को देका और उसी अवस्था में उसने पतिरूप से उसका वरण भी कर लिया। जागने के अनन्तर उसने सब हाल अपनी प्रिय सखी चित्रलेखा से कहा और किसी प्रकार उसका पता लगाने की प्रार्थना की। चित्रलेखा को योग की सिद्धियाँ सिद्ध थीं। उसने देवता, गंधर्व, सिद्ध, चारण, नाग, दैत्य विद्याधर, पक्षी और मनुष्यों के सुंदर चित्र बनाये। उषा भगवान कृष्ण के पौत्र और प्रद्युम्न के पुत्र यादवश्रेष्ठ अनिरुद्ध का चित्र देखकर संकुचित हो गयी और उन्हीं को अपना मनमोहन बतलाया। तब चित्रलेखा अपनी शक्ति से सोते हुए अनिरुद्ध को उठाकर ले आयी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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