भागवत स्तुति संग्रह पृ. 335

भागवत स्तुति संग्रह

चौथा अध्याय

द्वारकालीला
चतुर्थ प्रकरण
बाणासुर का अभिमान भंजन[1]

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ज्वर तथा रुद्रकृत स्तुतियाँ

 
त्वं हि ब्रह्म परं ज्योतिर्गूढं ब्रह्माणि वाङ्मये।
यं पश्यन्त्यमलात्मान आकाशमिव केवलम्।।[2]

बाणासुर के अभिमान का नाश एक निराले ढंग से हुआ। वह राजा बलि का पुत्र था और शिव जी का परम भक्त था। उसके सहस्र भुजाएँ थीं, इस कारण वह बड़ा बली था। एक समय वह शिव जी के पास गया और कहने लगा कि मेरे हाथ खुजलाते हैं किन्तु मेरे साथ कोई युद्ध करने को उद्यत नहीं होता। शंकर जी ने कहा- ‘रे मूढ़! जब तेरी ध्वजा अपने आप टूट पड़ेगी तब मेरा गर्व-नाश करने वाले मेरे समान योद्धा के साथ तेरा युद्ध होगा।’ यह सुनकर कुबुद्धि बाणासुर हर्षयुक्त होकर उस समय की प्रतीक्षा करने लगा।

इसकी उषा नामक की एक कन्या थी। उषा ने स्वप्न में एक अति सुंदर पुरुष को देका और उसी अवस्था में उसने पतिरूप से उसका वरण भी कर लिया। जागने के अनन्तर उसने सब हाल अपनी प्रिय सखी चित्रलेखा से कहा और किसी प्रकार उसका पता लगाने की प्रार्थना की। चित्रलेखा को योग की सिद्धियाँ सिद्ध थीं। उसने देवता, गंधर्व, सिद्ध, चारण, नाग, दैत्य विद्याधर, पक्षी और मनुष्यों के सुंदर चित्र बनाये। उषा भगवान कृष्ण के पौत्र और प्रद्युम्न के पुत्र यादवश्रेष्ठ अनिरुद्ध का चित्र देखकर संकुचित हो गयी और उन्हीं को अपना मनमोहन बतलाया। तब चित्रलेखा अपनी शक्ति से सोते हुए अनिरुद्ध को उठाकर ले आयी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भा. 10।62-63।
  2. अर्थ इसी प्रकरण के श्लोक 34 की टीका में देखिये।

संबंधित लेख

भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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