विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
चौथा अध्याय
द्वारकालीला
तृतीय प्रकरण
रुक्मिणी के साथ भगवान् का विनोद[1]
रुक्मिणीकृत स्तव
इन आठ पटरानियों से भगवान के दस-दस पुत्र और एक-एक कन्या हुई। 16,100 स्त्रियों के भी अगणित पुत्र हुए तथा इसी प्रकार इन पुत्रों के भी सैंकड़ों स्त्रियों से करोड़ों पुत्र-पौत्र हुए। अब भगवान गार्हस्थ जीवन व्यतीत करने लगे। उनके मंदिर में चँदवे तने हुए थे, जिनमें मोतियों की झालरें लटक रही थीं। वह भवन रत्नमय दीपकों से प्रकाशमान और अनेक प्रकार के सुगन्धित पुष्पों की लताओं से शोभित था। वहाँ रत्नजटित पलंग पर बिछाये हुए दूध के फेन के समान श्वेत कोमल गद्दे पर आनन्द से बैठे हुए जगत के नियन्ता श्रीहरि की रुक्मिणी जी पतिबुद्धि से सेवा कर रही थीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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प्रकरण | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
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