भागवत स्तुति संग्रह पृ. 431

भागवत स्तुति संग्रह

चौथा अध्याय

द्वारकालीला
एकादश प्रकरण
भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना[1]

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द्वारकावासी[2] तथा इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा की हुई स्तुति

 
नताः स्म ते नाथ सदाङ्घ्रिपंकजं विरिञ्चवैरिञ्च्यसुरेन्द्रवन्दितम्।
परायणं क्षेममिहेच्छतां परं न यत्र कालः प्रभवेत्परः प्रभुः।।6।।

भवाय नस्त्वं भव विश्वभावन त्वमेव माता च सुहृत्पतिः पिता।
त्वं सद्गुरुर्नः परमं च दैवतं यस्यानुवृत्त्या कृतिनो बभूविम।।7।।

अहो सनाथा भवता स्म यद्वं त्रैविष्टपानामपि दूरदर्शनम्।
प्रेमस्मितस्निग्धनिरीक्षणाननं पश्येम रूपं तव सर्वसौभगम्।।8।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भा. स्क. 1 अ. 10-11
  2. भा. स्क. 1 अ. 11 के अंतर्गत द्वारकावासियों द्वारा कृत स्तुति का अर्थ।
    हे नाथ! जो ब्रह्मा, सनकादि और इन्द्रादि सकल देवताओं से वन्दित हैं, जो इस संसार में परम क्षेम की इच्छा करने वालों का उत्तम आश्रय हैं और जहाँ सबके नाशक काल का भी सामर्थ्य नहीं चल सकता ऐसे आपके चरणकमलों में हम अपना मस्तक नवाते हैं।।6।।
    हे विश्वभावन! आप हमारे कल्याण के लिए प्रसन्न होइये, आप हमारे माता, मित्र, रक्षक, पिता, श्रेष्ठ गुरु और परम देवता हैं, आपकी सेवा से हम कृतार्थ हैं।।7।।
    आपकी उपस्थिति से हम आज सनाथ हो गये हैं क्योंकि देवताओं को भी जिसका दर्शन दुर्लभ है ऐसे प्रेमसहित मन्द हास्य कृपाकटाक्षयुक्त मुखकमल तथा संपूर्ण अंगों की अनुपम सुंदरता से शोभायमान आपके स्वरूप हम दर्शन कर रहे हैं।।8।।
    हे अम्बुजाक्ष! हे अच्युत! आप अपने सुहृदों को देखने के लिए हमको छोड़कर जब हस्तिनापुर अथवा व्रज को जाते हैं तब जैसे सूर्य के बिना नेत्रों की भाँति आपके बिना हमारा एक क्षण भी कोटि संवत्सर के तुल्य प्रतीत होता है, एक क्षण भी करोड़ वर्षों के समान जान पड़ता है। भाव यह है कि जैसे सूर्य के बिना आँख में अंधकार हो जाता है वैसे ही आपके बिना हम भी अंधे हो जाते हैं।।9।।

संबंधित लेख

भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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