भागवत स्तुति संग्रह पृ. 384

भागवत स्तुति संग्रह

चौथा अध्याय

द्वारकालीला
नवम् प्रकरण
देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार[1]

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राजा बहुलाश्व,[2] बलि, वसुदेव और श्रुतदेवकृत स्तुतियाँ

 
भवान्हि सर्वभूतानामात्मा साक्षी स्वदृग्विभो।
अथ नस्त्वत्पदाम्भोजं स्मरतां दर्शनं गतः।।31।।

स्ववचस्तदृतं कर्तुमस्मद्दृग्गोचरो भवान्।
यदात्थैकान्तभक्तान्मे नानन्तः श्रीरजः प्रियः।।32।।

को नु त्वच्चरणाम्भोजमेवंविद्धिसृजेत्पुमान्।
निष्किञ्चनानां शान्तानां मुनीनां यस्त्वमात्मदः।।33।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भा. स्क. 10 अ. 85।86
  2. भा. स्क. 10 अ. 86 के अंतर्गत राजा बहुलाश्वकृत स्तुति का अर्थ-
    हे विभो! आप स्वयंज्योति और सब प्राणियों के साक्षी आत्मा हैं। आपके चरण-कमल का स्मरण करने वाले हम लोगों के आप दृष्टिगोचर हुए हैं।।31।।
    आपने जो यह कहा था कि एकान्त में भजन करने वाले भक्त की अपेक्षा बलराम जी, लक्ष्मी जी और ब्रह्मा जी भी मुझे प्रिय नहीं है, अपने उस वचन को सत्य करने के निमित्, आप हमारे दृष्टिगोचर हुए हैं।।32।।
    आप द्रव्यहीन और शान्त ऋषियों को अपना स्वरूप तक भी दे देते हैं, ऐसा जानने वाला कौन सा पुरुष आपके चरण कमलों का त्याग करेगा।।33।।
    तथा जो आप राजा यदु के वंश में अवतार धारण करके इस संसार में दुःख पाने वाले मनुष्यों के तापों को शान्त करने के लिए त्रिलोकी में सब लोगों के पाप समूह को दूर करने वाले अपने यश को फैलाते हैं: ऐसे सदा प्रकाशमान बुद्धिवाले, सुशान्त तप करने वाले नर नारायण ऋषिरूप आप भगवान् कृष्ण जी को नमस्कार है।।34-35।।

संबंधित लेख

भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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