भागवत स्तुति संग्रह पृ. 13

भागवत स्तुति संग्रह

पहला अध्याय

बाललीला
प्रथम प्रकरण
भगवान का अवतार[1]

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देवगणकृत स्तुति

 
श्रृण्वन्गृणन्संस्मरयंश्च[2] चिन्तयन्नामानि रूपाणि च मंगलानि ते।
क्रियासु यस्त्वच्चरणारविन्दयोराविष्टचेता न भवाय कल्पते।।

अखिल शास्त्रवेत्ता विद्वानों का मत है कि स्ववर्णोचित नित्य-नैमित्तिक वैदिक कर्म करते हुए श्रीभगवान की लीलाओं का चिन्तन और उनके नामों का उच्चारण करते रहना चाहिए। इससे अंतःकरण भगवदाकार हो जाता है और भक्तिशास्त्र में यही पुरुषार्थ माना गया है। यहाँ शंका होती है कि ईश्वर व्यापक, निर्गुण और निराकार है इसलिए उसका कोई नाम या चरित्र होना संभव नहीं है। अतः भगवद्भक्ति पुरुषार्थ की साधन नहीं हो सकती ।[3]

यह शंका यदि वह पुरुष करे जो सप्तम भूमिका में स्थित है तो उसके लिए यह उत्पन्न हो सकती है। उस अवस्था में तो ब्रह्मा के सिवा किसी और वस्तु का भान ही नहीं होता। किन्तु श्रीमद्भगवतगीता का कथन है कि देहधारियों को अद्वैतबुद्धि होनी बहुत दुर्लभ है।[4]

हम को सृष्टि की प्रत्यक्ष उपलब्धि होती है। अतः मानना पड़ेगा कि सृष्टि का कर्ता कोई है, वही अन्तर्यामी, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान् तथा सब भूतों की योनि[5]है। यही हुआ सगुणोपाधिक ईश्वर है। इन्हीं गुणों का समावेश ‘माया’ शब्द में है, यह माया अनादि सान्त है अर्थात् किसी समय इसका लय हो जाता है; किन्तु यह है कि ईश्वर के वश में। इसी का आश्रय करके ईश्वर सब प्रकार के आश्चर्युक्त कर्म करता है। भगवान श्रीकृष्ण के अद्भुत कर्म इस माया के ही कारण हैं। जीव भी ईश्वर का अंश है किन्तु यह पड़ा है माया के वश में। वेदान्त में जीवन संबंधी माया का नाम अविद्या है। इसी अविद्या का कार्य है आवरण और विक्षेप, जिससे यह जीव अपने अंशी ईश्वर से पृथक सा हो गया है। इस आवरण और विक्षेप को अलग करने के लिए ही उपासना की आवश्यकता है। भगवान ने अपने श्रीमुख से ही कहा है कि जो मेरी शरण में आते हैं अर्थात मेरी उपासना करते हैं वे इस माया को पार कर लेते हैं ।[6]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भागवत पुराण 10।1 और 2
  2. अर्थ इसी प्रकरण के श्लोक 37 की टीका में देखिये।
  3. यथा श्रुतिः ‘अशब्दमस्पर्शमरूपमव्ययम्’ (कठ. 3।15 मुक्तिकोप. 2।72) ‘अस्थूलमनण्वह्रस्वमदीर्घम्’ (बृ. 3।8।8)
  4. अव्यक्ता हि गतिर्दुःखं देहवद्भिरवाप्यते। (गीता 12।5)
  5. यथा श्रुतिः ‘सर्वकर्मा सर्वकामः सर्वगन्धः सर्वरसः’ (छा. 3।14।2) ‘मनोमयः प्राणशरीरों भारूपः’ (छा. 3।14।2) ‘स क्रन्तु कुर्वीत’ (छा. 3।14।1) ‘एष सर्वेश्वर एष सर्वत्र एषोऽन्तर्याम्येष योनिः। सर्वस्य प्रभवाप्ययौ हि भूतानाम्’ (मा. 1।6)
  6. दैवी ह्योषा गुणमयी मम माया दुरत्यया। मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते।। (गीता। 7।14)

संबंधित लेख

भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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