विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
दूसरा अध्याय
माधुर्यलीला
अष्टम प्रकरण
परिशिष्ट
माधुर्य-भक्ति[1]
उद्धव जी कृत गोपी स्तुति
उद्धव जी गोपियों को श्रीकृष्ण जी दर्शन के लिए इस प्रकार उत्कण्ठित हुई देखकर भगवान के संदेशों से उनको समझाने लगे। उद्धव जी ने कहा ‘अरी गोपियों! तुम कृतार्थ हो, सर्वलोक पूजित हो, क्योंकि तुम्हारा मन भगवान में स्थिर हो रहा है। दान, व्रत, तप, होम, जप, इंद्रिय संयम ये सब साधन भगवान् की भक्ति के निमित्त हैं और वह भक्ति तुमको प्राप्त हो गयी।’ गोपियों को श्रीकृष्णचंद्र का संदेश सुनने की उत्कण्ठा थी; वे उद्धव जी को एकान्त में ले गयीं और आसन देकर उनके भाषण की प्रतीक्षा करने लगीं। तब उद्धव जी ने कहा भगवान श्रीकृष्ण ने यह संदेश भेजा है, ‘मैं सब देहों में विराजमान हूँ। जैसे पंचमहाभूत (पृथ्वी, अप्, तेज, वायु, आकाश) सब पदार्थों में हैं ऐसे ही मैं भी मन, प्राण, इंद्रियों और गुणों के अधिष्ठान रूप से सबमें व्याप्त हूँ। मैं ही अपनी माया का आश्रय लेकर जगत् की सृष्टि, पालन और संहार करता हूँ। आत्मा शुद्ध ज्ञानस्वरूप है। यद्यपि आत्मा गुणों से युक्त नहीं है तथापि माया के कार्यभूत, मन की सुषुप्ति, स्वप्न, जाग्रतरूपा वृत्तियों के कारण प्राज्ञ, तैजस तथा विश्वरूप से प्रतीत होता है; स्वयं अपने शुद्ध स्वरूप से प्रतीत नहीं होता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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