विषय सूची
भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
क्या ईश्वर और धर्म बिना काम चलेगा?
एक पैसा दान देकर कोई रुई खरीदकर बत्ती-निर्माण कर ठाकुर जी की आरती करता है; कोई एक पैसा पाकर बंसी खरीदकर मत्स्य मारता है। कोई अरबपति अहंकार से प्रतिष्ठा मात्र के लिये लाखों का दान कर सकता है। बाह्य प्रयोजन उससे अधिक सम्पन्न हो सकते हैं। परन्तु भावना की विशेषता उस दान में नहीं है। एक वृद्धा गरीबनी श्रद्धा से अपने अर्ध सेटक अन्न से छटाँक अन्न का दान करती है। भावना की दृष्टि से अरबपति के लक्षदान से इस छटाँक दान का महत्त्व कहीं अधिक है। आज जहाँ साँप की चर्बी, मछली के तेल को घृतरूप में विक्रय करके करोड़ों रुपयों का लाभ प्राप्त कर लेने पर लाखों का दान किया भी गया तो वह कितने महत्त्व का हो सकता है? उस दान को लेने वालों, खाने वालों की क्या दशा होगी? इसके अतिरिक्त आज दान के नाम पर पापमयी संस्थाएँ भी तो चल रही हैं। जहाँ से नास्तिकों का सृजन होता है, जहाँ से नास्तिकता तथा तन्मूलक धर्म का प्रचार होता है ऐसी भी संस्थाएँ दान और धर्म के ही नाम पर चल रही हैं। इस प्रकार के दान और धर्म से देश को सुख-शान्ति कैसे प्राप्त हो सकती है? अर्थ-कामपरायण संसार अर्थकाम के सम्पादन में तो अपना सम्पूर्ण पुरुषार्थ लगा देता है, परन्तु धर्म और मोक्ष को दैव या प्रारब्ध पर छोड़ देता है। जितनी सावधानी और चतुरता है, सब अर्थकाम में ही उपयुक्त की जा रही है। ‘एक राजा के दो मंत्री थे, एक व्यापार कार्य में दक्ष, दूसरा संग्राम में दक्ष था; परन्तु अनभिज्ञतावश राजा ने उनका विपरीत उपयोग किया। व्यापारनिपुण को संग्राम में, संग्रामनिपुण को व्यापार में लगा दिया, जिसका फल व्यापार में हानि और संग्राम में पराजय हुई।’ इसी तरह अर्थकाम-सम्पादन में चतुर प्रारब्ध को धर्म, मोक्ष में लगा दिया गया; धर्ममोक्ष-सम्पादन में चतुर पुरुषार्थ को अर्थकाम में नियुक्त कर दिया है। इसीलिये दोनों के विषय में गड़बड़ी हो रही है। वस्तु और अवसर का दुरुपयोग होने से हानियों का ठिकाना नहीं रहता। ज्ञान, विज्ञान, धर्म और ईश्वर बड़ी उत्तम चीज हैं, परन्तु इन्हीं का दुरुपयोग करने से अनर्थ हो सकता है। ईश्वर और धर्म के सहारे सामाजिक, लौकिक विचारणीय स्थिति की उपेक्षा बुरी है। समाज-राष्ट्र के हित का प्रश्न आने पर वैराग्य और विश्वमिथ्यात्व भावना का प्राधान्य खतरनाक है; जबकि भोजन-पानादि से वैसा उत्कट वैराग्य नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज