भक्ति सुधा -करपात्री महाराज पृ. 815

भक्ति सुधा -करपात्री महाराज

सर्वसिद्धान्त-समन्वय

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इसी तरह शैवों तथा पाशुपतों ने भी उत्तरमीमांसा पर भाष्य किया है। द्वैत, विशिष्टाद्वैत आदि अंशों में वैष्णव भाष्कारों और शैव भाष्यकारों में भेद नहीं है। प्रत्युत सबका यह दावा है कि यह वाद मुख्य रूप से हमारे ही हैं, दूसरों ने इन्हें चुराया है। वैष्णवमतानुयायियों का कहना है कि शैव भाष्यकार ने वैष्णव विशिष्टाद्वैत को चुराकर अपना रूप-रंग देकर व्यक्त किया है। शैव मतानुयायियों का कहना है कि वैष्णव विशिष्टाद्वैतियों ने ही शैवविशिष्टा द्वैतियों के मत को चुराया है। वैष्णव “अथातो ब्रह्मजिज्ञासा” इस सूत्र के ब्रह्म पद का विष्णु अर्थ करते हैं, शैव शिव अर्थ करते हैं। वैष्णवों में भी परस्तर विवाद है। कोई ब्रह्म शब्द में श्रीमन्नारायण, कोई रामचन्द्र, कोई श्रीकृष्ण, कुछ लोग श्रीकृष्ण के भी द्वारकास्थ, मथुरास्थ, व्रजस्थ, वृन्दावनस्थ, निकुंजस्थ स्वरूपों में मतभेद उठाते हैं। शाक्ताद्वैतवादी अनन्त, अखण्ड, प्रकाशात्मक शिव और उसकी स्वभावभूता, उससे अत्यन्त अभिन्न विभाशक्ति को शक्ति कहते हैं। वही शक्ति बाह्योन्मुख होकर प्रपंच व्यंजिका होती है। अन्तर्मुख होकर केवल शिवस्वरूपा ही होती है।

इसके बाद अद्वैतवादियों का कहना है कि आपका भी कहना ठीक है, परन्तु पूर्वोक्त सिद्धान्तियों का भी कहना निर्मूल नहीं। “वेदैश्व सर्वेरहमेव वेद्या”, “सर्वे वेदा यत् पदमामनन्ति” इत्यादि श्रुतियों से वेदों का परम तात्पर्य “एकमेवाऽद्वितीयम्” इत्यादि श्रुतिसहस्र सिद्ध सजातीय-विजातीय-स्वगतभेद-शून्य, पूर्णप्रज्ञानानन्दघन परमात्मा में ही है।

अवान्तर तात्पर्य पारमार्थिक सत्ता से कुछ न्यून सत्ता वाले अर्थात् अपरिच्छिन्न पूर्ण परमतत्त्व की परमार्थ सत्यता से न्यून सत्ता वाले अघटित-घटना-पटीयसी अचिन्त्यानिर्वाच्य भगवदीय शक्ति एवं तदीयविकास-विविधवैचित्र्योपेत, विश्वजनीनाऽनुभवनिवेदित विश्व व्यवहारोपयुक्त सर्वतन्त्र सिद्धान्तसिद्ध पदार्थों में भी है। अघटित-घटना-पटीयान आत्म वैभव हम भी मानते हैं पर उसे अनिर्वाच्य स्वभाव और मानना चाहिये? क्योंकि यदि उसे परमात्मतत्त्व से व्यतिरिक्त परमार्थ सत्य मानें तो अद्वैतप्रतिपादक श्रुतियाँ विरुद्ध होती हैं। असत खपुष्पादिवत् माने तो प्रपंच निर्माण पटीयस्त्व नहीं बनता। परमार्थसत परन्तु परमतत्त्व से अत्यन्त अभिन्न माने तो तद्वत् ही अविकारी कूटस्थ होने से उसमें सुख-दुःख-मोहात्मक प्रपंच की हेतुता नहीं बनती।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
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4. मानसी-आराधना 20
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9. शिवलिंगोपासना-रहस्य 63
10. श्री विष्णु-तत्त्व 88
11. गायत्री-तत्त्व 97
12. श्री भगवती-तत्त्व 102
13. बुद्धावतार का प्रयोजन 178
14. गजेन्द्र-मुक्ति 182
15. शक्ति का स्वरूप 188
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40. विभीषण-शरणागति 450
41. श्रीकृष्ण बालक्रीड़ा 469
42. साक्षान्मन्मथमन्मथः 486
43. श्रीवृन्दावन में वर्षा और शरत 507
44. वेणुरव 512
45. किरातिनियों का स्मररोग 517
46. वेणुगीत 525
47. चीरहरण 691
48. वेदान्त-रससार 730
49. निर्गुण या सगुण? 781
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51. सर्वसिद्धान्त-समन्वय 808
52. क्या ईश्वर और धर्म बिना काम चलेगा? 839
53. श्रीरासलीलारहस्य 854
54. श्री रासपञ्चाध्यायी 1142

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