भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
चीरहरण
उनके सिवा दण्डकारेण्य निवासी मुनिगण भी गोपकुमारी के रूप में प्रकट हैं। वे भी भगवान रामचन्द्र को देखकर मोहित हो गये थे। अहो! खरदूषण जैसे मांसरुधिराशी क्रूरकर्मी हिंस्र राक्षस भी जिनकी सरसता, मनोहरता पर मुग्ध हो जाते हैं, और कहते हैं, “यद्यपि भगिनी कीन्ह कुरुपा, बध लायक नहिं पुरुष अनूपा।।”, वीतराग अरण्यवासी मुनिगण उन पर मुग्ध हो जायँ, तो क्या आश्चर्य? यहाँ तो रामचन्द्र मर्यादा पुरुषोत्तम थे, उन्होंने यही वरदान दिया कि लीला पुरुषोत्तम रूप से आप लोग व्रजकुमारिका होकर मिलें। वे भी व्रजकुमारिका बनकर कात्यायिनी की अर्चना में लगे। इसी तरह कुछ देवांगनाएँ भी भगवत्कृपा से सिद्धि प्राप्त कर भगवान को प्राप्त हुई थीं। ऐसे ही कोई भौमवैकुण्ठ में रहने वाली भौमी थीं, कोई अभौम वैकुण्ठ की अभौमी थीं। युग-युगान्तरों, कल्प-कल्पान्तरों से, यह सब पूर्णतम पुरुषोत्तम सर्वप्राणियों के पर-प्रेमास्पद श्रीकृष्ण के संमिलन के लिये व्यग्र हो घोर तपस्या कर रहीं थीं, अब उन्हें व्रजवास, व्रजकुमारिका जन्म प्राप्त हो गया है। इन्हें यद्यपि श्रीकृष्ण दर्शन होता है, परन्तु अभी इन्हें श्रीकृष्ण अति दुर्लभ प्रतीत होते हैं। दुर्लभ वस्तु प्राप्त करने के लिये भगवती का आश्रयण करना ही चाहिये। पूर्णतम पुरुषोत्तम परब्रह्म श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिये तो ब्रह्मविद्यारूपा कात्यायिनी का अवलम्बन युक्त ही है। “मोक्षार्थिभिर्मनिभिरस्तरामस्तदोषैर्विद्यासि सा भगवती परमा हि देवी।” अस्तु, समस्त दोष मौक्षार्थी मुनि अम्बा को श्रीविद्यारूप से सेवते हैं। इसलिये श्रीमन्नन्दव्रजकुमारि का कृष्णप्राप्ति के लिये कात्यायिनी के शरण गयीं। लौकिकी दृष्टि से भी यह अत्यन्त पवित्र भाव है। कुली कुमारिकाएँ सुन्दर वरप्राप्ति के लिये श्रीदेवी की आराधना करती हैं। श्रीकृष्ण का लोकोत्तर सौन्दर्य-माधुर्यादि गुणगण भुवनविख्यात था। ऐसे सुन्दर सर्वगुणसम्पन्न शकुलोत्पन्न श्रीकृष्ण के प्रति कुमारिकाओं को अपने वरण के लिये स्पृहा होनी स्वाभाविकी है। अतः उस मनोरथपूर्ति के लिये उनका कात्यायिनी अर्चन व्रत ठीक ही था। जैसे दुर्लभ पदार्थ को प्राप्ति के लिये लोक में देवता का आराधन किया जाता है, वैसे ही दुर्लभ श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिये नन्दव्रजकुमारिकाएँ भी कात्यायिनी के आराधन में लगीं। भिन्न-भिन्न फलों के लिये श्रीकृष्ण की आराधना में कृष्ण-प्रेम गौण रहता है, फल-प्रेम मुख्य होता है। श्रीकृष्ण के ही लिये श्रीकृष्ण की आराधना में श्रीकृष्ण ही फल होते हैं और वे ही साधन भी होते हैं, परन्तु श्रीकृष्णप्राप्त्यर्थ कात्यायिनी की आराधना में श्रीकृष्ण फल ही हैं, उनमें सामधनता का निवेश नहीं है। केवल शुद्ध फल श्रीकृष्ण के लिये श्रीकुमारिकाओं को कात्यायिनी व्रत अद्भुत कृष्णप्रेम का साधन है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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