भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
वेणुगीत
अत: उनके भोक्ता श्रीकृष्ण भोग्य नहीं हो सकते। उनके ही क्या, दूसरे पुरुषों के भी भोग्य वे नहीं हो सकते। पुरुष पुरुषों के भोग्य नहीं होते। पारतन्त्र्य लक्षण स्त्रीत्व ही सब में हैं, अतः सब भोग्य ही हैं। तो क्या स्वयं श्रीकृष्ण ही अपना भोग करें? नहीं। यह इस रीति के विरुद्ध है। अब अधरपल्लव की सर्वाभोग्या सुधा, किसकी भोग्या? देवभोग्या खग, मृग, पशु, तरु, लता, गुल्मादिकों को, भगवद्भोग्या श्रोत्र द्वारा व्रजांगनाओं को, अब सर्वाभोग्या का भोक्ता कौन? यह तब भोग्य हो कि जब भगवान भोग्य हों। ये कैसे हो? उनको भोक्ता तो कोई भी नहीं हो सकता। इसलिये कहा कि जब भगवद्भोग्या अधरसुधा व्रजांगनाओं में सर्वत्र भरपूर हुई और व्रजांगनाओं में श्रीकृष्ण को रमण हुआ, उन्होंने उस भगवद्भोग्या अधरसुधा का संभोग किया, तब लोकोत्तर रसोद्रेक से व्रजांगनाओं में श्रीकृष्ण भावापत्ति और श्रीकृष्ण में व्रजांगना भावापत्ति हुई। उस समय श्रीकृष्ण भोग्य हुए। इसलिये सर्वाभोग्या अधरसुधा का भोग व्रजांगनाओं को प्राप्त हुआ। सारांश यह कि साधारण स्थिति में जो अधरसुधा किसी को भोग्य नहीं वह सर्वाभोग्या है। जहाँ श्रीकृष्ण ने रमण किया वहाँ विपरीत भावापत्ति हुई। भक्तों में इसके अनेक उदाहरण हैं। विष्णु पुराण में प्रह्लाद का प्रसंग बड़ा ही सुन्दर वर्णित है। प्रह्लाद के अंग में शिला बाँधकर उसे समुद्र में फेंक दिया गया। जितनी उसको अधिक यातना हुई उतनी उसकी विष्णुप्रीति अधिक बढ़ी। यहाँ तो कुछ विघ्न-बाधा हुई कि कहते हैं, भजन हमारे कुल में सहता नहीं। एकादशी को अगर कोई मरा, तो कहते हैं कि एकादशी हड़ ही है। कनक जैसे-जैसे दग्ध किया जाता है वैसे-वैसे उसका मूल्य बढ़ता है, वह चमकता है, निखरता है। वैसे ही भक्त अधिकाधिक निखरता है। अत: भक्तों को कष्ट, विपत्तियाँ आती हैं, पर वे धैर्य पुरःसर आगे ही बढ़ते हैं। पहली स्थिति यह कि “भूतानि विष्णुः”, सर्व विष्णुमय है। फिर “अहं विष्णुः” की भावना का दार्ढ्य सम्पादित होता है। तब प्रह्लाद का पैर जिस क्षण समुद्र में पड़ता , आसमुद्र भूमण्डल डगमग करने लगता। यह भावना-महिमा से विष्णुभावापत्ति है। इसी तरह छान्दोग्य में “भूमैवाधस्तात्” इत्यादि से सर्वत्र सर्व दिशाओं में भूमा पूर्णतम पुरुषोत्तम को बतलाकर “अहमेव सर्वतः” ऐसा बतलाया है। श्रीवल्लभाचार्य भी इसे मानते हैं, पर कहते हैं कि यह संचारी भाव है। कुछ देर के लिये प्रेमोन्माद में आता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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