भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
वेणुगीत
एक कथा है कि एक बार श्रीदेवर्षि नारद प्रफुल्लित अद्भुत आमोदमय वृन्दारण्य में पधारे। वहाँ पर श्रीवृषभानुनन्दिनी तथा व्रजांगनाओं के दिव्य प्रेममय हास-रास-विलास-विलासित भावों अनुभव किया तो रोने लगे। नारद को रोते देख व्रजरमणियों ने पूछा कि ऐसे आनन्द समुद्र में अवगाहन करने के समय रोते हो? नारद ने कहा- हम रोते उनके लिये हैं, जो मुक्त हो गये हैं। जो बन्धन में हैं, उनको तो सम्भव है कि यह रस मिल सके। उनको श्रीवृषभानुनन्दिनी तथा श्रीकृष्ण परमानन्द के ऐसे अद्भुत प्रेमरसमय श्रृंगार का दर्शन हो सकेगा, मगर मुक्तों को तो बिल्कुल ही असम्भव है। इसी भावना से कहते हैं कि वेदान्तियों की मुक्ति पाषाण कल्प है, किन्तु उसके निरूपण का यह अवसर नहीं। आश्रय-ऊपर कहे हुए मुक्तों को भगवल्लीलोपयोगी दिव्य देहादिकों का प्रदान करना, पूर्णतम पुरुषोत्तम लीन जीवों का निष्कासन करने पर उन मुक्तिमुक्तों को लीलापरिकरोपयोगी बनाना आश्रय है, इसी को प्रत्यापत्ति कहते हैं। इसके अनुसार वह जीव वृन्दावन में गुल्म, लता पाषाण, वृक्ष हुए। मुक्त, मुनीन्द्र, अमलात्मा, महात्मा परमहंस ही आकर सर्वरूप में प्रकट हो गये हैं, इन्हीं की भोग्या सुधा देवभोग्या है। “द्योतनात्मकत्वात्, प्रकाशात्मकत्वात्, श्रीकृष्णस्वरूपत्वात्, देषाः, किं वा दीन्यन्तीति देवाः।” श्रीकृष्णचंद्र से क्रीड़ा के लिये जो आये वे देव हैं। दिव्धातु तो बड़ा ही व्यापक अर्थ रखता है। ‘दिवुक्रीडाविजिगीषाव्यवहार द्युतिस्तुतिमोदमदस्वप्नकान्तिगतिषु’। ये देव पुरुषोत्तम श्रीकृष्णचन्द्र के साथ लीला परिकर होने के लिये प्रादुर्भूत हुए। इनको भी प्रेमनिरोध हुआ। ये श्रीप्रभु के प्रेम में संसार विस्मरणपूर्वक मन से उनमें लीन हो गये। एक स्थिति तो यह कि ‘वृन्दावनं परित्यज्य पदमेकं न गच्छति’ तब तो ठीक ही है, पर जब भगवान गये तब तरु-गुल्म वगैरह शुष्क क्यों न हो गये? कारण यह कि बहिर्मुख नहीं, इनकी भावना यह है कि श्रीकृष्णचन्द्र कहीं गये ही नहीं। अगर वे प्रभु का वहाँ अभाव समझते, तो मुर्झाते, रोते, जल जाते, अतः प्रेमनिरोधसम्पन्न लता, तरु-गुल्म, खग-मृगों में देवभोग्या अधरसुधा का संचार हुआ। भगवान के मुखचन्द्र से निःसृत जिस वेणुनादामृत का वृक्ष-लता, खगमृग, पशु आस्वादन करते हैं, वह देवभोग्या अधरसुधा है। यह सुधा है श्रोत्रपेया, मुखपेया नहीं, इस सुमधुर अधरसुधा का संभोग श्रोत्रों द्वारा ही होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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