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भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
किरातिनियों का स्मररोग
भगवान ने सोचा था कि ऐसा कह देने से अम्बा को विश्वास हो जायगा और वह मुँह खुलवाकर न देखेगी। परन्तु नन्दरानी भी पूरी थी। उसने कहा- “अगर ऐसी बात है तो मुख खोल दे- तर्हि व्यादेहि।” अब तो भगवान फँस गये। अगत्या व्याध से डरे पक्षी की तरह मुख खोल दिया- “व्यादत्ताव्याहतैष्वर्थः।” मुख के खुलते ही उसमें सागर, भूधर, वन, पर्वत दीख पड़े। यशुमति डरी, उसके हाथ से छड़ी गिर गयी, वह बेहोश हो गयी। कुछ टीकाकार भगवदुक्तियों को सत्य ही सिद्ध करते रहने के कारण “नाहं भक्षितवान्” की व्याख्या करते हैं- “नाहं किंचिद् वाह्यं भक्षितवान् किन्तु सर्व मदन्तस्थमेव” अर्थात मैंने कोई बाहर की वस्तु नहीं खायी, मेरे उदर में ही है। परन्तु श्री जीव गोस्वामी आदि का कहना है कि भगवान झूठ बोले ही और बोलना ही चाहिये था। बात यह है कि भगवान की दो प्रधान शक्तियाँ हैं- एक माधुर्यधिष्ठात्री महाशक्ति और दूसरी ऐश्वर्याधिष्ठात्री महाशक्ति। उस समय व्रज में माधुर्यधिष्ठात्री महाशक्ति का साम्राज्य था, भगवान श्रीमन्नन्दरानी यशोदा के उत्संग में लालित हो रहे थे। ऐश्वर्याधिष्ठात्री महाशक्ति उस समय रुद्धप्रवेशा थी। वह प्रभु की सेवा का अवसर ढूँढ़ रही थी। जब उसने देखा कि हाथ में छड़ी लिये यशोदा अब मेरे प्रभु को, प्राणधन को मारे बिना न रहेगी, तब अपने कौशल से उन्हें बचाने का प्रयत्न किया, यशोदा को श्रीमुख में अनन्त ब्रह्माण्ड दीख पड़े। भावुकों की तो यहाँ तक भावना है कि प्रभु ने यशोदा से अपने बचने के लिये सिर्फ कहभर दिया था कि “समक्षं पश्य मे मुखम्”, वास्तव में वे अपना मुख खोलकर दिखाना नहीं चाहते थे, क्योंकि मिट्टी तो आखिर खायी ही थी। तब खुल कैसे गया? तो मातृकोपरविरश्मि द्वारा उनका मुखकमल स्वयं ही विकसित हो गया। तात्पर्य यह है कि लीलारसपोषिका ऐसा झूठ दोष नहीं गिना जाता, किन्तु गुण ही गिना जाता है। इसी भाव की ‘भागवत’ में कुन्ती की स्तुति है- हे व्रजेन्द्रनन्दन, श्यामसुन्दर! जब आपकी अघटितघटनापटीयसी माया से मुग्ध हुई यशोदा रस्सी लेकर बाँधने लगी, उस समय “वक्त्रं निनीय भयभावनया स्थितिस्य” मुख नीचा किया, आँखें डबडबा आयीं, अंजनमिश्रित अश्रु कपोल पर लुढ़क आये, मानो नीलकमल के कोश पर ओस के कण या मुक्ताबिन्दु शोभा पा रहे हैं। “सा मां विमोहयति भीरपि यद्बिभेति” जिससे काल भी भयभीत होता है, उसका यशोदा से डरना मुझे मुग्ध कर रहा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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