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भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
भगवच्छरणागति से ही गति
भद्रतनु ने कहा- “भगवन! आपको मेरी प्रसन्नता के लिये यह कार्य तो करना ही पड़ेगा।” भगवान ने कहा-“अच्छा, तुम्हारी प्रसन्नता के लिये मैं तुम्हारे गुरुदेव से मिलूँगा, तुम उन्हें ले आओ।” बस इस तरह प्रभु की विशेष कृपा के दान्त को भी भगवान का दर्शन मिला। कथानक का आशय यही है कि किसी भी स्थिति में प्राणी भगवान के चरणों में जाकर सदाचारी बनकर भगवान को प्राप्त कर लेता है, अतः प्राणी को चाहिये कि वह हर तरह से प्रभु के शरण हो। इत्यादि वचन उपर्युक्त भावों का ही पोषण करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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