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नैर्ऋत्य में कष्ठमाल के निपातस्थल में ऐन्द्रजालविद्या-सिद्धिप्रद वैष्णवी शक्ति समन्वित चौथा उपपीठ हुआ। पश्चिम में नासा-मौक्तिक के पतनस्थान में वाराही शक्त्यधिष्ठित पाँचवाँ उपपीठ हुआ। वायुकोण में मस्तकाभरण के पतनस्थान में चामुण्डा शक्ति-युक्त क्षुद्रदेवता-सिद्धिकर छठा उपपीठ हुआ और ईशान में केशाभरण के पतन से महालक्ष्मी से अधिष्ठित सातवाँ उपपीठ हुआ।
18- बाहु के पतनस्थल में अमरकण्टक पर्वत पर ओंकारक्षेत्रपीठ हुआ। वहाँ ‘खकार’ का प्रादर्भाव हुआ। वह पीठ नर्मदा से अधिष्ठित है, वहाँ तप करने वाले महर्षि जीवन्मुक्त हो गये। उसके उत्तर में कंचुकी की पतनभूमि में उपपीठ हुआ, जो ज्योतिर्मन्त्र-प्रकाशक एवं ज्योतिष्मती से अधिष्ठित है।
19- वक्षःस्थल के पतनस्थल में एक पीठ हुआ और ‘गकार’ की उत्पत्ति हुई। अग्नि ने वहाँ तपस्या की और देवमुखत्त्व को प्राप्त होकर ज्वालामुखी संज्ञक उपपीठ में स्थित हुई।
20- वामस्कन्ध के पतनस्थान में मालवपीठ हुआ, वहाँ ‘धकार’ की उत्पत्ति हुई। गन्धर्वों ने रागज्ञान के लिये तपस्या कर वहाँ सिद्धि पायी।
21- दक्षिण कक्ष का जहाँ पात हुआ, वहाँ कुलान्तक पीठ हुआ एवं ‘डकार’ की उत्पत्ति हुई। विद्वेषण, उच्चाटन, मारण के प्रयोग वहाँ सिद्ध होते हैं।
22- जहाँ वाम कक्ष का पतन हुआ, वहाँ कोट्टकपीठ हुआ और ‘चकार’ का प्राकट्य हुआ। वहाँ राक्षसों ने सिद्धि प्राप्त की है।
23- जठरदेश के पतनस्थल में गोकर्ण पीठ हुआ। ‘छकार’ की उत्पत्ति हुई।
24- प्रथम वलि का जहाँ निपात हुआ, वहाँ मातुरेश्वर पीठ होकर ‘जकार’ की उत्पत्ति हुई, वहाँ शैवमन्त्र शीघ्र सिद्ध होते हैं।
25- अपर वलि के पतनस्थान में अट्टाहास पीठ हुआ, ‘झकार’ का प्रादुर्भाव हुआ, वहाँ गणेश-मन्त्रों की सिद्धि होती है।
26- तीसरी वलि का जहाँ पतन हुआ वहाँ विरजपीठ हुआ और ‘त्रकार’ की उत्पत्ति हुई। वह पीठ विष्णु-मन्त्रों का सिद्धि प्रदायक है।
27- जहाँ बस्तिपात हुआ और ‘टकार’ की उत्पत्ति हुई वहाँ राजगृहपीठ हुआ। राजगृह में वेदार्थज्ञान की प्राप्ति होती है। नीचे क्षुद्रघण्टिका के पतनस्थल में घण्टिका नामक उपपीठ हुआ, वहाँ ऐन्द्रजालिक मन्त्र सिद्ध होते हैं।
28- नितम्ब के पतनस्थल में महापथपीठ हुआ तथा ‘ठकार’ की उत्पत्ति हुई। जातिदुष्ठ ब्राह्मणों ने वहाँ शरीर अर्पित किया और दूसरे जन्म में कलियुग में देहसौख्यदायक वेदमार्ग-प्रलुप्तक अधोरादि मार्ग को चलाया।
29- जघन का जहाँ पात हुआ, वहाँ कौछगिरिपीठ हुआ और ‘डकार’ की उत्पत्ति हुई। वन देवतओं के मन्त्रों को वहाँ सिद्धि शीघ्र होती है
30- दक्षिण ऊरु के पतनस्थान में एलापुरपीठ हुआ, ‘ढकार’ का प्रादुर्भाव हुआ।
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