भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्री भगवती-तत्त्व
इस मन्त्र में उसी भगवती के अविद्यारूप का वर्णन है। माया स्थूल, सूक्ष्म, कारण और समाधि इन चार रूपों में प्रकट होती है, युवति रहती है, सुपेशा, सुन्दर रूपवाली, घृत के समान प्रतीत होती है, ज्ञानों को ढँकने वाली है, जीव, ईश्वर दोनों ही उससे सम्बन्ध रखते हैं।
इस वचन से भी एक तत्त्वावरक तम के अस्तित्व का पता लगता है।
आदि वचनों से भी तत्त्व की सिद्धि होती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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