भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्री भगवती-तत्त्व
माया रूप में भी उसी भगवती के ही एक स्वरूप का वर्णन होता है।
अर्थात जैसे कोई लोहित-शुक्लकृष्ण रंग की कबरी बकरी अपने समान ही बहुत बच्चों को उत्पन्न करती है, वैसे ही सत्त्व, रज, तम तीनों गुणों वाली प्रकृति भी अपने समान ही त्रिगुण महदादि प्रपंच का निर्माण करती है। आवरणात्मक होने से उसका तमोगुण ही कृष्णरूप है, प्रकाशात्मक होने से सत्त्वगुण ही शुक्ल रंग है, रंजनात्मक होने से रजोगुण ही लोहित रंग है। जैसे कबरे बच्चों वाली कबरी बकरी का उपभोग करते हुए कोई बकरे उसका अनुगमन करते हैं, कोई उससे भोग प्राप्त कर विरक्त होकर उसे त्याग देते हैं, वैसे ही कोई जीव महदादि प्रपंचवती त्रिगुणा प्रकृति का उपभोग करते हुए उसका अनुगमन करते हैं, कोई उससे भोगापवर्ग प्राप्त करके उसको त्याग देते हैं। यह आज भी माया होती है। ईश्वर को कोई भी कार्य करने के लिये प्रकृति की अपेक्षा होती है। ‘‘प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य सम्भवाम्यात्ममायया।’’ ‘‘मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम्।’’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज