भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्रीरासलीलारहस्य
यदि आपको खिचड़ी बनानी है तो उसके लिये जैसी और जितनी अग्नि की जितनी देर तक आवश्यकता है यदि उतनी अग्नि न देंगे अथवा बीच-बीच में अग्निसंयोग को रोक देंगे तो खिचड़ी कभी बन ही न पायेगी। इसी प्रकार भगवद्भजन में सफलता प्राप्त करने के लिये भी दीर्घकाल तक निरन्तर पर्याप्त अभ्यास की अपेक्षा है। इसी तरह यदि दीर्घकाल तक भगवच्चरण स्मरण और भगवत्स्वरूपानुध्यान करते रहोगे तो उसका व्यसन हो जायगा और यह व्यसन ही परम सौभाग्य है।
परन्तु यह दीर्घकाल तक प्रियतम के सम्मिलन की चाह लगी रहे-प्रभु से मिलने की उत्कण्ठा उत्तरोत्तर बढ़ती जाय तो यह बड़े ही सौभाग्य की बात है। ऐसी प्रीति तो चातक और मीन में ही देखी जाती है।
चातक का एक ही नियम है। वह स्वाति-बूँद को छोड़कर दूसरे जल की ओर कभी दृष्टिपात भी नहीं करता। उसके अभाव में वह निर्मलनीर-प्रपूरित सरोवर के तट पर भी पीऊ-पीऊ रटते-रटते मर जायगा परन्तु अन्य जल कदापि ग्रहण न करेगा। अपने एकमात्र प्रियतम पयोधर को छोड़कर वह किसी से याचना नहीं करता। परन्तु वह पयोधर उसे क्या देता है? खूब गर्ज-तर्ज कर ओलों की वर्षा करता है और बिजली भी गिरा देता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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